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________________ उत्तराध्ययनसूत्र में काव्यतत्त्व डा० बिहारीलाल जैन, उदयपुर उत्तराव्ययन सूत्र अर्धमागधी प्राकृत-भाषामें रचित एक महत्त्वपूर्ण जैन आगम ग्रंथ है । ईसा पूर्व छठी शताब्दी में भगवान महावीर ने जो उपदेश दिये थे उन्हें उनके शिष्यों ने सूत्रग्रंथो के रूप में लिपिबद्ध कर लिया । वे ही ग्रंथ “आगम' या 'श्रुत' कहलाते हैं। प्रस्तुत आगम या श्रुत-ग्रथमें भगवान महावीरने नव-दीक्षित साधुओं के लिए जिन आचार-संहिता का उपदेश दिया था उसका सार संगृहीत हैं। इस के छत्तीस अध्ययनों में साधुओं के आचार एवं तत्त्वज्ञान का सुन्दर निरूपण किया गया है। उत्तराध्य यनसूत्र की भाषा सरल, सरस एवं साहित्यिक गुणों से भी समृद्ध है । यद्यपि सैद्धान्तिक विवेचन के स्थल निरस एवं शुष्क हैं और पुनरुक्तियों से भी भरे हुए हैं तथापि समग्र दृष्टि से इस ग्रंथकी भाषाशैली साहित्यिक, उपदेशात्मक, दृष्टान्त-अलंकार-बहुल और सुभाषितात्मक है । इसमें प्रयुक्त अनेक आख्यान और संवाद बहुत रोचक बन पड़े हैं। कोई भी धर्मोपदेष्टा, चिन्तक या दार्शनिक मूलतः सहृदय होता है और अपनी विशुद्ध वृत्ति से समिष्ट के कल्याण के लिए जो कुछ भी कहता है या लिखता है उसका चिन्तन महत्त्व होता है । उत्तराध्ययनकी आध्यात्मिक्ता का जो महत्त्व श्रमण परम्परा में हैं वही महत्त्व साहित्यिक-परम्परा में भी अक्षुण्ण है क्योंकि कोई भी काव्यात्मक उक्ति आत्मानद भी प्रदान करती है । अन्तर केवल बाह्य परिधान का होता है। काव्य का गणवेश सुन्दर होता है और अध्यात्म की भाषा केवल भाषा होती है। ग्रथ में दोनों ही प्रकार के रूप दिखाई देते हैं। सैद्धान्तिक अध्ययनों में दार्शनिक तत्त्वों का जो सूक्ष्म एवं रुक्ष वर्णन है उससे इस प्रथ को दर्शनशास्र कहा जा सकता है और जहां अलंकार, गुण, रीति, पनि, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001431
Book TitleJain Agam Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages330
LanguagePrakrit, Hindi, Enlgish, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & agam_related_articles
File Size18 MB
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