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________________ १६० ( काया, वाणी तथा मन से जिसने कोई दुष्कृत नहीं किया, से संवृत्त हैं उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ । ) कोहा वा जइ वा हासा लोहा वा जइ वा मुसं न वयई जो उ तं वयं बूम माहणं ॥ भया । प्रज्ञा ठाकर तीनों उ. सू. २५-२४ ( क्रोध, हास्य, लोभ या भय से जो असत्य नहीं बोलता उसे ब्राह्मण कहते है | ) न जटाहि न गोत्तेन न जच्चा होति ब्राह्मणो । यहि सच्चं च धम्मो च सो सुची सो च ब्राह्मणो || धम्मपद २९३ - ११ ( जटा, गोत्र या जन्म से ब्राह्मण नहीं होता, जिस में सत्य और धर्म है वही शुची अर्थात् पवित्र है, वही ब्राह्मण है | ) चित्तमन्तमचित्तं वा अप्पं वा जइ वा वहुं । न गिण्हाइ अदत्तं तं वयं बूम माहणं ॥ (जो अदत्त है अर्थात् किसी के द्वारा ( दान में स्वयं देना ) दिये बिना सचित्त ( अर्थात् दास, पशु आदि ) अथवा अचित्त ( अर्थात् सुवर्ण आदि) जरा भी नहीं लेता ( अर्थात् जो कुछ मांगता नहीं ) उसे हम ब्राह्मण कहते हैं । ) उ. सू. २५-२५ प्रकार अकिञ्चनं अनादानं तमहं बूमि ब्राह्मणं || धम्मपद - ३९६-१४ ( जो अकिञ्चन है, अपरिग्रही ( कुछ लेने की इच्छा रहित है उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ | ) Jain Education International जहा पोमं जले जायं नोवलिप्पइ वारिणा । एवं अलित्तं कामेहिं तं वयं बूम माहणं ॥ उं० सू० २५-२७ अलिप्त रहता है, ( जल में उत्पन्न कमल पुष्प जिस प्रकार जल से उसी प्रकार जो कामभोगों से अलिप्त रहता है उसे हम ब्राह्मण कहते हैं । ) For Private & Personal Use Only वारि पोक्खरपत्ते व आरम्गेरिव सासपो । यो न लिम्पति कामेसु तमहं बूमि ब्राह्मणं ।। धम्मपद - ४०१ - १९ www.jainelibrary.org
SR No.001431
Book TitleJain Agam Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages330
LanguagePrakrit, Hindi, Enlgish, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & agam_related_articles
File Size18 MB
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