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जबूद्वीप प्रज्ञप्ति और भागवत में ऋषभचरित
और कुटक का राजा अर्हत् कलियुग में अपने वेदधर्म का त्याग कर पाखंड धर्म चलाएगा, फलतः दुष्ट लोग अस्नान, अनाचमन, अशौच, केशोल्लु चन आदि व्रत रखेगे और ब्रह्म, ब्राह्मण एवं यज्ञपुरुष की निंदा करेंगे । महापुराण के अनुसार ऋषभदेव के साथ दीक्षित राजाओं में से जो अशक्त थे वे वापस नहीं जा सके अतः वे एकदंडी, त्रिदंडी, जटाधारी आदि पाखंड वेषधारी बने । मरीचिने योग और कापिल सांख्य की रचना की आदि
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उपर्युक्त इन तीनों ग्रंथों में वर्णित ऋषभचरित को देखने पर यह अनुमान कर सकते हैं कि जं. प्र. के काल में ऋषभकथा अल्पांश में विद्यमान थी। आगे चल कर भागवत - महापुराण काल में उस कथा का विस्तृतीकरण हुआ । समाज में जो कथा चलती थी, उसमें दोनों परंपरा ने अपने मत के अनुकूल सुधार किया । महापुराण में ऋषभ के पुत्रों के बीच भरत - बाहुबली युद्ध / संघर्ष की जो बात आई है उसका कोई अन्य मूल है । ऋषभ की कथा में जो भिन्नता दिखाई देती है उसका कारण यह भी हो सकता है कि समाज में ऋषभ की कथा भिन्न भिन्न रूप से प्रचलित थी ।
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