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जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति और भागवत में ऋषभचरित ।
प्रा. डा. हरनारायण उ. पण्ड्या , कलोल जैन आगम साहित्य में जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति उपांग है, जिसके चार अधिकार हैं, जिनमें जंबूद्वीप, जंबूद्वीपगत भरतक्षेत्र, भरतक्षेत्रगत काल, ऋषभदेव, भरत चक्रवर्ती, हिमवाननिषधादि पर्वत, जिनजन्ममह और मुहूर्त आदि का वर्णन है। यह ग्रंथ इसाको दूसरी-तीसरी शती का माना जाता है। ____ ब्राह्मण परंपर, के १८ पुराणों में भागवत का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसके १२ स्कंध है, जिनमे ऋषभदेव और भरत का भी वर्णन मिलता है । इस ग्रन्थ को विद्वान लोग ९ से १२वीं शती के बीच रखते है। विन्टरनिट्झ १०वीं शती में रखते हैं ।
यहाँ जं. प्र. और भागवत में वर्णित ऋषभचरित की तुलना अभिप्रेत है। दोनों ग्रन्थों में ऋषभदेव के पिता का नाम नाभि है। माता के नाम में पाठान्तर भी है और भिन्नता भी है, जैसे जं. प्र. में मरुदेवी नाम है, जब कि भागवत में मेरुदेवी है, वे मेरु पर्वत की नव पुत्रियों में सबसे बडी हैं। भागवत में इसके अलावा एक दूसरा नाम सुदेबी भी मिलता है। __ जं. प्र. और महापुराण ( जैन दिगम्बर ग्रन्थ ) में ऋषभदेव के पितामह आदि पूर्व पुरुषों का उल्लेख नहीं है, जब कि भागवत में चार पूर्वपुरुषों के नाम मिलते हैं-जैसे स्वायंभुव मनु के दो पुत्र हैं – प्रियव्रत और उत्तानपाद । प्रियव्रत के आग्नीध्र आदि १० पुत्र हैं, जिनमें आग्नीध्र को जंबूद्वीप का शासन सौंप दिया था ! आग्नीध्र को नाभि आदि ९ पुत्र थे।"
जं. प्र. अनुसार नाभि १४ वॉ कुलकर है। ब्राह्मण परंपरा में जो स्थान मनु का है, वही स्थान जैन पर परा में कुलकर का हैं। महापुराण में मनु शब्द कुलकर का पर्यायवाचक हैं । भागवत के अनुसार मनुओं की
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