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रिहणगिचरिउ
घत्ता
इयर वे-वि मद्दवइ-सुय जष्णसेणि सइलिंधि तुहारी । अच्छिय केण-वि विहि-बसेण कीया-कुरु व-कुलबग्वय-गारी ।। १०
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णंदण-वयणु सुणेवि जणेरे जंभारी-भग्यिंभ-णिहेरें) दंत-तिणग्गे कोट्ट-कुढारें
गिट पहिउ विणयाचारें हउं तुम्हारउ एवहिं किंकर स-परिवार स-कलत स-उत्तरू पेक्खंतहा णर-वर-संघायही किउ अहिमेउ जुहिट्ठिल-गयहा इयर चयारि-वि तहि हक्कारिय । दिणई उविसणइं वइसारिय रुप्प-महारह सुउ परिओसे (?) पभगइ धण-धण-घग्घर-घोमें कामिणि-थण-परिधट्टण-
धुत्ते व रिय आसि जरसंघहा पुत धीय महारी तहा ण-वि दिण्णी णाई सुरंगण क-वि अवइण्णी
घत्ता खंडव-डामर वीर-वर सुर-वर-भवणुच्छलिय-महा-गुण । इत्तिउ मई अभत्थियउ उत्तर पई परिणेवी अज्जुण ॥
[१०] मच्छ-वयण-विहसिय-मुह-कजउ तो सम्भावे भणइ घणंजउ मई करणग्गहार दरिसाविय णव-रस-गट्ट-भाव-णच्चाविय अवरु-वि पिउ सव्वायरि यत्तगु तेण णिसिद्ध विरुद्ध वरत्त तो वरि होहि परम-संजुत्तर सयल-कला-कलाव-संजुत्तर अस्थि वालु णव-जोव्वणइत्तउ महु गंदणु देवइ-दोहित्तउ के सव-ससहे सुहद्दहे जायउ । णामेणाहिवण्णु विस्वायउ सो परिणयणु करेउ स-हत्थं तं णिसुणेवि वयणु परम भणइ विराडु रणंगणे दृज्जय जसु भावइ तसु देहि धणं जय
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