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________________ १५४ रिट्ठणेमिचरिउ. (४) तो गंधारि-णंदणो धाइओ विकण्णो । सहसा सेय-वाहणो सरवरेहिं छण्णो ।। आयामेवि विजएं तेत्थु काले सर छिदेवि आहउ सो णिडाले विहलंघलु सिरु विहुणतु णटु णं मयगलु अंकुस-घाय-त? .. तहिं काले विविसइ?) दूसहेहिं जमवेसिय?) दूय-समप्पहेहिं ४ धयरट्ठ-णराहिव-णदणेहिं समकंडिउ विहि-मि समद्दणेहिं । ताह-मि हय हय धय-दंड छिण्ण कप्परिय कवय उरयले-वि भिण्ण ओसारिय भग्ग-मडप्फरेहिं . घण-वण-वियणाउर किंकरेहि जो जो सवडम्मुहु को-वि एइ तहो तहो रण-धत्र वीमच्छु देइ ८ परिसक्कइ थक्कइ वलइ धाइ गय-जूहे पठ्ठ मइ दु गाई घत्ता जो ते रहवरि सई मंचियउ सो कोवाणलु पाडियउ । रह-हरि-करि-अरि-गिरि णिड्डहेवि पुणु गंगेयहो अब्मिडिउ ॥ १०. दिण्ण-पयाहिणेण णिय-रहवरं णरेण जय-जय-कारिओ महंतेण आयरेण ।। तेरह संवच्छर गमिय ताय कह-कह-वि तुहारा दिट्ठ पाय लइ पहरणु पेसणु करमि अज्जु जिम अम्हहु जिम तुम्हहुँ जे रज्जु पोत्तरुअ-पियामह भिडिय वे-वि. अप्फालेवि चावई संख देवि . ४. कलहोय-रहवरारूढ वीर कइ-ताल-महा-धय-धरण धीर तो दीहर-परिह-महाभुरण सर बीस विसज्जिय सरि-सुण्ण तिहिं उत्तर तिहिं वीभच्छु विद्ध हय चउहि महा-रहु विहिं णिसिद्ध अवरट्ठ महा-घए फरहरंते : चामीयर-वाणरे थरहरंते ८ लाइय भाईरहि-णदणेण तो गरेण कुरव-कडवंदपोण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001427
Book TitleRitthnemichariyam Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages220
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size9 MB
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