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________________ धर्मपरीक्षा-४ अयं धर्मः सरागस्य यदवाप्य मनीषितम् । न विश्वसिति' कस्यापि वियोगे च मुमूर्षति ॥७३ मण्डलो मण्डलीं प्राप्य मन्यते भुवनाधिकम् । भषति ग्रहणवस्तो दीनः स्वर्गपतेरपि ॥७४ नीचः कलेवरं लब्ध्वा कृमिजालमलाविलम्। कपिलो मन्यते दोनः पीयूषमपि दूरसम् ॥७५ रक्तो' यो यत्र तस्यासौ कुरुते रक्षणं परम् । काकः पालयते किं न विष्टां संगृह्य सर्वतः ॥७६ सुन्दरं मन्यते रक्तो विरूपमपि मूढधोः। गवास्थि ग्रसते श्वा हि मन्यमानो रसायनम् ॥७७ चिक्रोड साविटैः साधं सदेहैरिव दुर्नयः । गते भर्तरि निःशङ्का मन्मथादेशकारिणी ॥७८ भोजनानि विचित्राणि धनानि वसनानि च । सा विटेभ्यो ददाति स्म कृतकाममनोरथा ॥७९ ७३) १. विश्वासं करोति । २. मृत्युम् इच्छति । ७५) १. सान्द्रम् । २. क कुर्कुरः; शृगालः । ७६) १. प्रीतः । ७८) १. कुरङ्गी । २. शरीरसहितदुर्नयैरिव । ७९) १. कृतः कामस्य मनोरथो यस्य [ यया ] । ___ यह रागी प्राणीका स्वभाव होता है कि वह अभीष्टको प्राप्त करके किसीका भी विश्वास नहीं करता है तथा उसके वियोगमें मरनेकी अभिलाषा करता है ॥७३॥ __ कुत्ता कुत्तीको पाकर के वह उसे संसार में सबसे श्रेष्ठ मानता है। वह बेचारा उसके ग्रहणसे भयभीत होकर इन्द्रको भी गुर्राता है ॥७॥ बेचारा नीच कुत्ता कीड़ोंके समूहके मैलेसे मलिन मृत शरीर ( शव ) को पाकर अमृतको भी दूषित स्वाढवाला मानता है ।।७।।। जो प्राणी जिसके विषयमें अनुरक्त होता है वह उसकी पूरी रक्षा करता है। ठीक है-कौआ क्या विष्टाका संग्रह करके उसकी सबसे रक्षा नहीं करता है ? करता है ।।७६॥ अनुरागी मनुष्य मूढबुद्धि होकर कुरूपको भी सुन्दर मानता है। ठीक है-कुत्ता गायकी हड्डीको रसायन मानकर खाया (चबाया) करता है ।।७७॥ पतिके चले जानेपर वह कुरंगी कामकी आज्ञाका पालन करती हुई शरीरधारी दुर्नयों ( अन्यायों) के समान व्यभिचारी जनोंके साथ निर्भय होकर रमण करने लगी ॥७८॥ कामकी इच्छाको पूर्ण करनेवाली वह कुरंगी उन जार पुरुषोंके लिए अनेक प्रकारके भोजनों, धनों और वस्त्रोंको भी देने लगी॥७२।। ७३) ब समवाप्य; अ वि for च । ७६) ब तस्यापि । ७९) ब क इ मनोरथाः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001425
Book TitleDharmapariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages409
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & religion
File Size24 MB
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