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________________ अमितगतिविरचिता एकीभूय ततः प्रीतौ जग्मतुस्तौ स्वमन्दिरम् । सुन्दरस्फुरितश्रीको नयोत्साहाविवोजितो ॥४२ मिलितौ शयितौ भुक्तौ तत्र तावासितौ स्थितौ । क्षमन्ते न वियोगं हि स्नेहलयितचेतसः ॥४३ प्रातविमानमारुह्य कामगं' प्रस्थिताविमौ । सुराविव वराकारौ दिव्याभरणराजितौ ॥४४ वेगेन तौ ततः प्राप्तौ पावनं पुष्पपत्तनम् । विचित्राश्चर्यसंकीणं मनसेव मनीषितम् ॥४५ अवतीर्णौ तदुद्याने तो काक्षितफलप्रदे। अनेकपादपालीढे त्रिदशाविव नन्दने ॥४६ स्तबकस्तननम्राभिर्वल्लीभिर्यत्र वेष्टिताः। शोभन्ते सर्वतो वृक्षाः कान्ताभिरिव कामुकाः ॥४७ ४२) १. नीत्युद्यमौ। ४३) १. पुरुषाः। ४४) १. इष्टं गच्छतीति । २. चलितो निर्गतौ। ४५) १. मनोवाञ्छितं स्थानमिव । ४७) १. झुंबखैः लंब्यः [लुम्बाभिः] । २. भर्तारः । __ तत्पश्चात् सुन्दर एवं प्रकाशमान लक्ष्मीसे संयुक्त वे दोनों वृद्धिंगत नय (नीति ) और उत्साहके समान एक होकर प्रसन्नतापूर्वक अपने घरको गये ॥४२॥ वहाँ उन दोनोंने मिलकर भोजन किया और फिर वे साथ ही बैठे, स्थित हुए एवं साथ ही सोये भी। ठीक है-जिनका चित्त स्नेहसे परिपूर्ण होता है वे एक दूसरेके वियोगको नहीं सह सकते हैं ॥४३॥ फिर प्रातःकालमें दिव्य आभरणोंसे विभूषित होकर उत्तम आकारको धारण करनेवाले वे दोनों मित्र दो देवोंके समान इच्छानुसार गमन करनेवाले विमानपर चढ़कर पाटलीपुत्रकी ओर चल दिये ॥४४॥ तत्पश्चात् वे दोनों मित्र विचित्र आश्चर्योसे व्याप्त उस पवित्र पाटलीपुत्र नगरमें इतने वेगसे जा पहुँचे जैसे किसी अभीष्ट स्थानमें मनके द्वारा शीघ्र जा पहुँचते हैं ।।४५।। वहाँ वे अनेक वृक्षोंसे व्याप्त होकर इच्छित फलोंको देनेवाले उस ( पाटलीपुत्र ) के उद्यानमें इस प्रकारसे उतर गये जिस प्रकार मानो दो देव नन्दन वनमें ही उतरे हों ॥४६॥ ___ उस उद्यानमें गुच्छोंरूप स्तनोंसे झुकी हुई बेलोंसे वेष्टित वृक्ष सब ओर इस प्रकारसे सुशोभित थे जिस प्रकार कि गुच्छोंके समान सुन्दर स्तनोंके बोझसे झुकी हुई स्त्रियोंसे वेष्टित होकर कामी जन सुशोभित होते हैं ॥४७॥ ४३) क तो वसितो, इ तो वसिता । ४४) इ प्रस्थितावुभौ; क नराकारी । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001425
Book TitleDharmapariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages409
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & religion
File Size24 MB
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