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________________ अमितगतिविरचिता कृत्रिमाकृत्रिमाः केचिन्नरामरनमस्कृताः। द्वीपेष्वर्धतृतीयेषु ये विद्यन्ते ऽहंदालयाः ॥१७ ते मया भक्तितः सर्वे वन्दिताः पूजिताः स्तुताः। अजितं निर्मलं पुण्यं दुःखविद्रवणक्षमम् ॥१८ न जात्वहं त्वया होनेस्तिष्ठाम्येकमपि क्षणम् । संयमः प्रशमेनेवे साधोहृदयतोषिणा ॥१९ भ्रमता भरतक्षेत्रे ललनातिलकोपमम् । अदर्शि पाटलीपुत्रं नगरं बहुवर्णकम् ॥२० गगने प्रसरन्यत्र यज्ञधूमः सदेक्ष्यते । चञ्चरीककुलश्यामः केशपाश इव स्त्रियः ॥२१ चतुर्वेदनि श्रुत्वा बधिरीकृतपुष्करम् । नृत्यन्ति केकिनो यत्र नीरदारवशङ्किनैः ॥२२ १७) १. क द्वीप अढाई। १८) १. स्फेटने विध्वंसने समर्थ; क दुःखनाशनसमर्थम् । १९) १. विना। २. उपशमेन विना। २१) १. भ्रमरसमूह। २२) १. आकाशम् । २. क मेघशब्दात् शङ्कितः । तू क्रुद्ध न हो। कारण कि मनुष्यक्षेत्र ( अढ़ाई द्वीप ) में स्थित जिनप्रतिमाओंकी वन्दना करता हुआ घूमता रहा हूँ ॥१६॥ जिनको मनुष्य और देव नमस्कार किया करते हैं ऐसे जो कुछ भी कृत्रिम और अकृत्रिम जिनालय अढ़ाई द्वीपोंके भीतर स्थित हैं उन सबकी मैंने भक्तिपूर्वक पूजा, वन्दना और स्तुति की है। इससे जिस निर्नल पुण्यका मैंने उपार्जन किया है वह सब प्रकारके दुखका विनाश करने में समर्थ है ।।१७-१८॥ जिस प्रकार साधुके हृदयको सन्तुष्ट करनेवाले प्रशम ( कषायोपशमन ) के बिना कभी संयम नहीं रह सकता है उसी प्रकार मैं तुम्हारे बिना एक क्षण भी कभी नहीं रह सकता हूँ ॥१९॥ ____ मैंने भरतक्षेत्रमें घूमते हुए बहुत वर्णों (ब्राह्मण आदि ) से संयुक्त पाटलीपुत्र नगरको देखा है । वह नगर महिलाके मस्तकगत तिलकके समान श्रेष्ठ है ॥२०॥ इस नगरमें निरन्तर आकाशमें फैलनेवाला यज्ञका धुआँ ऐसे देखनेमें आता है जैसे कि मानो भ्रमरसमूहके समान कृष्ण वर्णका स्त्रीके बालोंका समूह ही हो ॥२१॥ उस नगरमें आकाशको बहरा करनेवाली चार वेदोंकी ध्वनिको सुनकर मेघोंके आगमनकी शंका करनेवाले मयूर नाचा करते हैं ॥२२॥ १८) अ ब ड इ पूजिता वन्दिताः । १९) इ संयमाः; क ड साधो हृदयं । २०) अ ब क्षेत्रं । २१) अ नगरे प्रसरत्यत्र; ब इ सदेक्षते; ब इव श्रियः । २२) अ नीरदा इव शं', ब नीरदागमश । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001425
Book TitleDharmapariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages409
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & religion
File Size24 MB
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