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________________ धर्मपरीक्षा - २ तारुण्यं जरसा ग्रस्तं जीवितं समर्वातिना । पदो विपदा पुंसां तृष्णैका निरुपद्रवा ॥४७ आरोहतु धराधीशं धात्रीं भ्राम्यतु सर्वतः । प्राणी विशतु पातालं तथापि ग्रसते ऽन्तकः ॥४८ सज्जनाः पितरो भार्याः स्वसारो' भ्रातरो ऽङ्गजाः । नागच्छन्तं क्षमा रोद्धुं समवर्तमतङ्गजम् ॥४९ हस्त्यश्वरथपादाति बलं पुष्टं चतुविधम् । भक्ष्यमाणं न शक्नोति रक्षितुं मृत्युरक्षसा ||५० दानपूजा मिताहारे मन्त्रतन्त्र रसायनैः । पार्यते न निराकर्तु कोपनो यमपन्नगः ॥५१ स्तनंधयो' युवा वृद्धो दरिद्रः सधनो ऽधनः । बालिशः " कोविदः शूरः कातरः प्रभुरप्रभुः ॥५२ २ ४७) १. क यमेन । ४८) १. क यमः । ४९) १. भगिनी [ न्यः ] । ५१) १. अवमोदर्यं । २. न प्रवर्तते शक्यते; क सामर्थ्यते । ५२) १. क बालकः । २. अज्ञानी मूर्खः । मनुष्योंकी युवावस्था ( जवानी ) बुढ़ापेसे, जीवित यम (मृत्यु) से और सम्पत्तियाँ विपत्तिसे व्याप्त हैं। हाँ, यदि कोई बाधासे रहित है तो वह उनकी एक तृष्णा ही है । अभिप्राय यह है कि युवावस्था, जीवन और सम्पत्ति ये सब यद्यपि समयानुसार अवश्य ही नष्ट होनेवाले हैं फिर भी अज्ञानी मनुष्य विषयतृष्णाको नहीं छोड़ते हैं - वह उनके साथ युवावस्थाके समान वृद्धावस्था में भी निरन्तर बनी रहती है || ४७|| २९ प्राणी चाहे पर्वत के ऊपर चढ़ जावे, चाहे पृथिवीके ऊपर सब ओर घूमे, और चाहे पातालमें प्रविष्ट हो जावे; तो भी यमराज उसे अपना ग्रास बनाता ही है - वह मरता अवश्य है ||४८ || सत्पुरुष, पिता ( गुरुजन ), स्त्रियाँ, बहिनें, भाईजन और पुत्र; ये सब आते हुए उस यमराजरूप उन्मत्त हाथीके रोकने में समर्थ नहीं हैं - मृत्युसे बचानेवाला संसारमें कोई भी नहीं है ॥ ४९ ॥ Jain Education International हाथी, घोड़ा, रथ और पादचारी; यह परिपुष्ट चार प्रकारका सैन्य भी मृत्युरूप राक्षसके द्वारा खाये जानेवाले प्राणीकी रक्षा करने में समर्थ नहीं है ॥५०॥ दान, पूजा, परिमित भोजन, मन्त्र, तन्त्र और रसायन ( रोगनाशक औषधि ) इनके द्वारा भी उस क्रोधी यमरूप सर्पका निराकरण नहीं किया जा सकता है ॥ ५१ ॥ स्तनपान करनेवाला शिशु, युवा, वृद्ध, दरिद्र, धनवान्, निर्धन, मूर्ख, विद्वान्, शूर, ४७) तृष्णैव । ४८) अ प्रविशत्पातालम् । ४९) हू पितरी । ५० ) अ ब पादातबलं; अ मृत्युराक्षसात् । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001425
Book TitleDharmapariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages409
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & religion
File Size24 MB
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