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________________ ३१९ धर्मपरीक्षा-१९ मक्षिकाभियंदादाय रसमेकैकपुष्पतः। संचितं तन्मधूत्सृष्टं भक्षयन्ति न धार्मिकाः ॥४१ मांसमद्यमधुस्था ये जन्तवो रसकायिकाः। सर्वे तदुपयोगेन भक्ष्यन्ते निःकृपैरिमे ॥४२ फलं खादन्ति ये नीचाः पञ्चोदुम्बरसंभवम् । पश्यन्तो ऽङ्गिगणाकोणं तेषामस्ति कुतः कृपा ॥४३ मुञ्चद्धिर्जीवविध्वंसं जिनाज्ञापालिभिस्त्रिधा। उदुम्बरं फलं भक्ष्यं पञ्चधापि न सात्त्विकैः ॥४४ कन्दं मूलं फलं पुष्पं नवनीतं कृपापरैः। अन्नमन्यदपि त्याज्यं प्राणिसंभवकारणम् ॥४५ कामक्रोधमदद्वेषलोभमोहादिसंभवम् । परपोडाकरं वाक्यं त्यजनीयं हिताथिभिः ॥४६ धर्मो निषूद्यते येन लोको येन विरुध्यते । विश्वासो हन्यते येन तद्वचो भाष्यते कथम् ॥४७ मधुमक्खियाँ एक-एक पुष्प से रसको लेकर जिसका संचय किया करती हैं उनके उस उच्छिष्ट मधुका धर्मात्मा जन कभी भक्षण नहीं किया करते हैं ॥४१॥ मांस, मद्य और मधुमें जो रसकायिक-तत्तज्जातीय-क्षुद्र जीव उत्पन्न हुआ करते हैं; उन तीनोंका सेवन करनेवाले निर्दय प्राणी उन सब ही जीवोंको खा डालते हैं ॥४२॥ जो नीच जन ऊमर आदि (बड़, पीपल, काकोदुम्बर और गूलर) पाँच प्रकारके वृक्षोंसे उत्पन्न फलोंको जन्तुसमूहसे व्याप्त देखते हुए भी उनका भक्षण किया करते हैं उनके हृदयमें भला दया कहाँसे हो सकती है ? नहीं हो सकती है ॥४३॥ __जिन भगवान्की आज्ञाका परिपालन करते हुए जिन सात्त्विक जनोंने-धर्मोत्साही मनष्योंने-जीववधका परित्याग कर दिया है वे उक्त पाँचों ही प्रकारके उदुम्बर फलोंका मन, वचन व कायसे भक्षण नहीं किया करते हैं ॥४४॥ जो कन्द (सूरन, शकरकन्द व गाजर आदि), जड़, फल, फूल, मक्खन, अन्न एवं अन्य भी वस्तुएँ प्राणियोंकी उत्पत्तिकी कारणभूत हों; दयालु जनोंको उन सबका ही परित्याग कर देना चाहिए ॥४५।। काम, क्रोध, मद, द्वेष, लोभ और मोह आदिसे उत्पन्न होनेवाला जो वचन दूसरोंको पीड़ा उत्पन्न करनेवाला हो ऐसे वचनका हितैषी जनोंको परित्याग करना चाहिए ॥४६।। जिस वचनके द्वारा धर्मका विघात होता हो, लोकविरोध होता हो तथा विश्वासघात उत्पन्न होता हो; ऐसे वचनका उच्चारण कैसे किया जाता है, यह विचारणीय है ॥४७॥ ४२) ब मद्यमांस; अ ब मधूत्था । ४७) ड विरोध्यते....तद्वचो वाच्यते । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001425
Book TitleDharmapariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages409
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & religion
File Size24 MB
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