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________________ २९७ धर्मपरीक्षा-१८ पल्यस्याथाष्टमे भागे सति शेषे व्यवस्थिते। चतुर्दश तृतीयस्यामुत्पन्नाः कुलकारिणः ॥१७ प्रतिश्रुत्यादिमस्तत्र द्वितीयः सन्मतिः स्मृतः। क्षेमंकरधरौ प्राज्ञौ सीमंकरघरौ ततः ॥१८ ततो विमलवाहो ऽभूच्चक्षुष्मानष्टमस्ततः । यशस्वी नवमो जैनैरभिचन्द्रः परो मतः ॥१९ चन्द्राभो मरुदेवो ऽन्यः प्रसेनो ऽत्र त्रयोदशः। नाभिराजो बुधैरन्त्यः कुलकारी निवेदितः ॥२० एते जातिस्मराः सर्वे दिव्यज्ञानविलोचनाः । लोकानां दर्शयामासुः समस्तां भुवनस्थितिम् ॥२१ मरुदेव्यां महादेव्यां नाभिराजो जिनेश्वरम् । प्रभात इव पूर्वस्यां तिग्मरश्मिमजीजनत् ॥२२ स्वर्गावतरणे भर्तुरयोध्यां त्रिदशेश्वरः । भक्त्या रत्नमयी चक्रे दिव्यप्राकारमन्दिराम् ॥२३ १७) १. समायां [ये । जब तृतीय कालमें पल्यका आठवाँ भाग शेष रहता है तब उस समय क्रमसे चौदह कुलकर पुरुष उत्पन्न हुआ करते हैं ॥१७॥ उनमें प्रथम प्रतिश्रुत, द्वितीय सन्मति, तत्पश्चात् क्षेमकर, क्षेमन्धर, सीमंकर, सीमन्धर, विमलवाह, आठवाँ चक्षुष्मान , नौवाँ यशस्वी, तत्पश्चात् अभिचन्द्र, चन्द्राभ, मरुदेव, तेरहवाँ प्रसेन और अन्तिम नाभिराज; इस प्रकार विद्वानोंके द्वारा ये चौदह कुलकर पुरुष उत्पन्न हुए माने गये हैं ॥१८-२०॥ ये सब जातिस्मरणसे संयुक्त व दिव्य ज्ञानरूप नेत्रसे सुशोभित-उनमें कितने ही अवधिज्ञानके धारक-थे। इसीलिए उन सबने उस समयके प्रजाजनोंको सब ही लोककी स्थितिको-भिन्न-भिन्न समयमें होनेवाले परिवर्तनको-दिखलाया था ॥२१॥ __ जिस प्रकार प्रभातकाल पूर्व दिशामें तेजस्वी सूर्यको उत्पन्न करता है उसी प्रकार अन्तिम कुलकर नाभिराजने मरुदेवी महादेवीसे प्रथम तीर्थकर आदि जिनेन्द्रको उत्पन्न किया था ॥२२॥ भगवान आदि जिनेन्द्र जब स्वर्गसे अवतार लेनेको हुए-माता मरुदेवीके गर्भ में आनेवाले थे-तब इन्द्रने भक्तिके वश होकर अयोध्या नगरीको दिव्य कोट और भवनोंसे विभूषित करते हुए रत्नमयी कर दिया था ।।२३।। १७) अ पल्यस्य वाष्टमे, ब पल्यस्याप्याष्टमे । १८) भ प्रज्ञी, ब प्राजः for प्राज्ञो। १९) व ड प्रसेनो तः; इ जनरन्त्यः । २१) इ समस्तभुवन । २३) ब त्रिदिवेश्वरः । ३८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001425
Book TitleDharmapariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages409
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & religion
File Size24 MB
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