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धर्मपरीक्षा-१६ इत्थं महान्तः पुरुषाः पुराणा धर्मप्रवीणाः परथोपविष्टाः । व्यासादिभिः श्वभ्रगतैरभीतैः प्ररूढमिथ्यात्वतमो ऽवगूढः ॥९३ जिनाध्रिपङ्कुरुहचञ्चरीको दुर्योधनो धन्यतमो ऽन्त्यदेहः । भीमेन युद्धे निहतो ममार व्यासो जगादेत्यनृतं विमुग्धः ॥९४ मुक्त्यङ्गनालिङ्गनलोलचित्ताः श्रीकुम्भकर्णेन्द्रजितादयो ये। विगा" मांसाशनदोषदुष्टं ते राक्षसत्वं जनखादि नीताः ॥१५ जगाम यः सिद्धिवधूवरत्वं वालिमहात्मा हतकर्मबन्धः । नीतः से रामेण निहत्य मृत्यु वाल्मीकिरित्थं वितथं बभाषे ॥९६ लङ्काधिनाथो गतिभङ्गरुष्टः श्रीवालये योगविधौ स्थिताय । कैलासमुत्क्षेपयितुं प्रवृत्तो विद्याप्रभावेन विकृत्य कायम् ॥९७
९३) १. आच्छादितैः। ९५) १. निन्द्य । ९६) १. वालिः।
इसी प्रकारसे जो प्राचीन महापुरुष-दुर्योधन आदि-धर्ममें तत्पर रहे हैं उनके विषयमें भी व्यास आदिने विपरीत कथन किया है। ऐसा करते हुए उन्हें वृद्धिको प्राप्त हुए मिथ्यात्वरूप गाढ़ अन्धकारसे आच्छादित होनेके कारग नरकमें जानेका भी भय नहीं रहा ॥२३॥
उदाहरणस्वरूप जो दुर्योधन राजा जिनदेवके चरणरूप कमलका भ्रमर रहकरउनके चरणोंका आराधक होकर दिव्य गतिको प्राप्त हुआ है उसके विषयमें मूढ़ व्यासने 'वह युद्धमें भीमके द्वारा मारा जाकर मृत्युको प्राप्त हुआ' इस प्रकार असत्य कहा है ॥९४।।
जो श्रेष्ठ कुम्भकर्ण और इन्द्रजित् आदि मुक्तिरूप स्त्रीके आलिंगनमें दत्तचित्त रहे हैंउस मुक्तिकी प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील रहे हैं-उन्हें व्यासादिने निन्दापूर्वक मांसभक्षण दोषसे दूषित ऐसी प्राणिभक्षक राक्षस अवस्थाको प्राप्त कराया है-उन्हें घृणित राक्षस कहा है ॥१५॥
जो बालि महात्मा कर्मबन्धको नष्ट करके मुक्तिरूप वधूका पति हुआ है-मोक्षको प्राप्त हुआ है-उसके सम्बन्धमें वाल्मीकिने 'वह रामके द्वारा मारा जाकर मृत्युको प्राप्त हुआ' इस प्रकार असत्य कहा है ॥२६॥ ___लंकाका स्वामी रावण समाधिमें स्थित बालि मुनिके निमित्तसे अपने विमानकी गतिके रुक जानेसे उनके ऊपर क्रोधित होता हुआ विद्याके बलसे शरीरकी विक्रिया करके उक्त मुनिराजसे अधिष्ठित कैलास पर्वतके फेंक देने में प्रवृत्त हुआ ॥९७।।
९४) अ दुर्योधनो दिव्यगति जगाम; ब निहतो ममाख्यामसो जगादे । ९६) क ड वाल्मीक इत्थम् ।
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