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________________ धर्मपरीक्षा - १५ ये पारदारिकीभूय सेवन्ते परयोषितः । प्रभावो जायते तेषां विटानां कथ्यतां कथम् ॥१६ कि मित्रासत्प्रलापेन कृतेनानेन वच्मि ते । उत्पत्ति कर्णराजस्य जिनशासनशंसिताम् ॥१७ व्यासस्य भूभृतेः पुत्रास्त्रयो जाता गुणालयाः । धृतराष्ट्रः परः पाण्डुविदुरश्चेति विश्रुताः ॥१८ एकदोपवने पाण्डू रममाणो मनोरमे । निरक्षत लतागेहे खेचरों काममुद्रिकाम् ॥१९ यावत्तष्ठति तत्रासौ कृत्वा मुद्रां कराङ्गुलौ । आगाच्चित्राङ्गदस्तावत्तस्याः खेटो गवेषकः ॥ २० १६) १. परदारलम्पटाः । १७) १. कथिताम् । १८) १. राज्ञः । जो परस्त्रियोंमें अनुरक्त रहकर उनका सेवन किया करते हैं वे यदि महान् प्रभावशाली हो सकते हैं तो फिर व्यभिचारी जनोंके विषय में क्या कहा जाये ? वे भी प्रभावशाली हो सकते हैं । अभिप्राय यह है कि अन्य दुराचारी जनोंके समान यदि देव व मुनिजन भी परस्त्रियोंका सेवन करने लग जायें तो फिर उन दुराचारियोंसे उनमें विशेषता ही क्या रहेगी और तब वैसी अवस्था में वे प्रभावशाली भी कैसे रह सकते हैं ? यह सब असम्भव है ||१६|| २४३ आगे मनोवेग कहता है कि हे मित्र ! इस प्रकार जो उन पुराणोंमें असत्य कथन पाया जाता है उसके सम्बन्धमें अधिक कहनेसे कुछ लाभ नहीं है । उन पुराणों में जिस कर्ण की उत्पत्ति सूर्यके संयोग से कुन्तीके कही गयी है उसकी उत्पत्ति जैन शास्त्रोंमें किस प्रकार निर्दिष्ट गयी है, यह मैं तुम्हें बतलाता हूँ ||१७|| व्यास राजाके गुणों के आश्रयभूत धृतराष्ट्र, पाण्डु और विदुर ये प्रसिद्ध तीन पुत्र उत्पन्न हुए थे ||१८|| एक समय पाण्डु वनक्रीड़ाके लिए किसी मनोहर उपवनमें गया था । वहाँ क्रीड़ा हुए उसने एक लतामण्डपमें किसी विद्याधरकी उस काममुद्रिकाको देखा जो अभीष्ट रूपके धारण कराने में समर्थ थी ॥ १९ ॥ करते उसे हाथ की अंगुली में डालकर वह अभी वहीं पर स्थित था कि इतनेमें उक्त मुद्रिकाको खोजते हुए चित्रांगद नामका विद्याधर वहाँ आ पहुँचा ||२०|| Jain Education International १६) अ क ड इ पारदारकीभूय; क ड इ योषितम् अ इ कथ्यते । १७) क कृतेन शृणु; अ कणिराजस्य । १८) अ धृतराष्ट्रोऽपरः । २० ) ब अगाच्चित्रा ; क ड आयाचित्रां । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001425
Book TitleDharmapariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages409
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & religion
File Size24 MB
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