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________________ धर्मं परीक्षा - १४ वचनोच्चारमात्रेण कल्मषं यदि जायते । तदोष्णो वह्निरित्युक्ते वचनं किं न दह्यते ॥५३ आचक्ष्व त्वं पुराणार्थं यथावृत्तमशङ्कितः । वयं नैयायिकः सर्वे गृह्णीमो न्यायभाषितम् ॥५४ ततः स्वपरशास्त्रज्ञो व्याचष्टे गगनायनेः । यद्येवं श्रूयतां विप्राः स्पष्टयामि मनोगतम् ॥५५ एकत्र सुप्तयोर्नार्योर्भागीरथ्याख्ययोर्द्वयोः । संपन्नगर्भयोः पुत्रः ख्यातो ऽजनि भगीरथः ॥५६ यदि स्त्रीस्पर्शमात्रेण गर्भः संभवति स्त्रियाः । मातु न कथं जातः पुरुषस्पर्शतस्तदा ॥५७ धृतराष्ट्राय गान्धारी द्विमासे किल दास्यते । तावद्रजस्वला जाता पूर्वं सा संप्रदानतेः ॥५८ चतुर्थे वासरे स्नात्वा पनसालिङ्गने कृते । वर्धयन्नुदरं तस्या गर्भो ऽजनि महाभरः ॥५९ ५४) १. कथय । २. न्यायकाः । ५५) १. मनोवेगः । ५८) १. विवाहात् । यदि वचनके उच्चारणमात्रसे ही दोषकी सम्भावना होती तो फिर 'अग्नि उष्ण है' ऐसा कहने पर मुँह क्यों नहीं जल जाता है ? ॥ ५३ ॥ इसलिए है भद्र ! यदि हमारे पुराणों में कहीं वस्तुतः कोई दोष है तो उसका केवल वचन मात्रसे उल्लेख न करके जहाँ वह दोष विद्यमान हो उस पुराणके अर्थको तुम हमें निर्भयता - पूर्वक कहो । हम सब नैयायिक हैं - न्यायका अनुसरण करनेवाले हैं, इसीलिए न्यायोचित भाषणको ग्रहण किया करते हैं ||५४ || २३१ इसपर अपने व दूसरोंके आगमके रहस्यको जाननेवाले उस मनोवेग विद्याधरने कहा कि यदि आप न्याय्य वचनोंके ग्रहण करनेवाले हैं तो फिर मैं अपने हृदयगत अभिप्रायको कहता हूँ, उसे सुनिए ॥ ५५ ॥ भागीरथी नामकी दो स्त्रियाँ एक स्थानपर सोयी हुई थीं, इससे उनके गर्भाधान होकर प्रसिद्ध भगीरथ नामका पुत्र उत्पन्न हुआ, यह आपके पुराणों में वर्णित है ||५६ || यदि स्त्रीके स्पर्शमात्र से अन्य स्त्रीके गर्भस्थिति हो सकती है तो फिर मेरी माता के पुरुषके स्पर्श से गर्भस्थिति क्यों नहीं हो सकती है, यह आप ही बतलायें ॥५७॥ धृतराष्ट्र के लिए गान्धारी दो मासमें दी जानेवाली थी, सो उसे देनेके पूर्व ही वह रजस्वला हो गयी । तब उसने चौथे दिन स्नान करके पनस वृक्षका आलिंगन किया । इससे उसके अतिशय भारसे संयुक्त गर्भ रह गया व पेट बढ़ने लगा ।। ५८-५९ ।। Jain Education International ५३) इदह्यति । ५५) क आचष्टे ड व्याचष्ट । ५६ ) इ भगीरथः । ५९) ब ज्ञात्वा for स्नात्वा .... वर्धयन्युदरम् । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001425
Book TitleDharmapariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages409
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & religion
File Size24 MB
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