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________________ धर्मपरीक्षा-८ ततो ऽजल्पीदसौ देव दीयतां मे प्रसादतः । क्षेत्रमेकं सदाकृष्यं वृक्षकूपविवजितम् ॥२२ ततो ऽध्यासीन्नुपो नायमात्मनो बुध्यते हितम् । विद्यते धिषणा शुद्धा हालिकानां कुतो ऽथवा ॥२३ उक्तो मन्त्री ततो राज्ञा जीवतादेष दीयताम् । क्षेत्र मागुरवं भद्र काष्ठं विक्रीय बर्पुटः ॥ २४ अदर्शयत्ततो मन्त्री क्षेत्रं तस्यागुरुद्रुमैः । इष्टवस्तुप्रदेः कीर्णं कल्पपादपसंनिभैः ॥ २५ ततो ऽध्यासीदसावेवमहो राजैष तृष्णिकः । अदत्त कीदृशं क्षेत्रं व्याकीणं विविधैर्दुमैः ॥२६ पौलस्त्य मञ्जनच्छायं विस्तीणं निरुपद्रवम् । छिन्नं भिन्नं मया क्षेत्रं याचितं दत्तमन्यथा ॥२७ २३) १. चिन्तितवान् । २. बुद्धया । ३. निर्मला विवेकपरायणाः । २४) १. वराक बापडो । २७) १. कोमलम् ; क स्निग्धम् । २. कृष्णम् । राजाके उपर्युक्त वचनों को सुनकर हालिक बोला कि हे देव ! आप कृपा कर मुझे एक ऐसा खेत दे दीजिए जो सदा जोता व बोया जा सकता हो तथा वृक्षों एवं झाड़ियोंसे रहित हो ॥२२॥ १२५ इसपर राजाने विचार किया कि यह अपने हितको नहीं समझता है। अथवा ठीक भी है, हल चलानेवाले पामरोंके भला निर्मल बुद्धि कहाँसे हो सकती है ? नहीं हो सकती है ||२३|| तत्पश्चात् राजाने मन्त्री से कहा कि हे भद्र ! इसे अगुरु चन्दनका खेत दे दीजिए, जिससे यह बेचारा लकड़ीको बेचकर आजीविका कर सकेगा ||२४|| तदनुसार मन्त्रीने उसे कल्पवृक्षोंके समान अभीष्ट वस्तुओंको प्रदान करनेवाले अगुरु वृक्षोंसे व्याप्त खेतको दिखलाया ||२५|| उसे देखकर हालिकने इस प्रकार विचार किया कि इस लोभी राजाने सन्तुष्ट होकर अनेक प्रकारके वृक्षोंसे व्याप्त कैसे खेतको दिया है - मुझे अनेक वृक्षोंसे व्याप्त ऐस । खेत नहीं चाहिए था, मैंने तो वृक्ष-वेलियोंसे रहित खेतको माँगा था ||२६|| मैंने ऐसे खेतको माँगा था जो सदा जोता जा सकता हो ( या मृदु हो ), अंजनके समान कृष्ण वर्णवाला हो, विस्तृत हो, चूहों आदिके उपद्रवसे रहित हो तथा छिन्न-भिन्न हो । परन्तु राजाने इसके विपरीत ही खेत दिया है ||२७| Jain Education International २२) अ अजल्पदसौ; इ सदाकृष्टं । २४) अ जीवितादेष; क ड इ मागुरुकं; ब भद्रं । २५ ) अ° तमदर्शत्ततो । २६) अ महाराज्यैषतुष्टिकः, क ड राजैक । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001425
Book TitleDharmapariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages409
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & religion
File Size24 MB
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