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________________ ११९ धर्मपरीक्षा-७ पयो ददाना सुरभिनिरस्ता म्लेच्छेन मूढेन मुधा प्रशस्ता। अज्ञानहस्ते पतितं महाघं पलायते रत्नमपार्थमेवे ॥८२ वदाति धेनुव्यवतिष्ठमानं' दुग्धं विधानेन विना न शुद्धम् । चामोकरं ग्रावणि विद्यमानं न व्यक्तिमायाति हि कर्महीनम् ॥८३ इदं कथं सिध्यति कार्यजातं हानि कथं याति कथं च वृद्धिम् । इत्थं न यो ध्यायति सर्वकालं स दुःखमभ्येति भवद्वये ऽपि ॥८४ यो न विचारं रचयति सारं माननिविष्टो मनसि निकृष्टः। म्लेच्छसमानो व्यपगतमानः स क्षेतकार्यों बुधपरिहार्यः॥८५ म्लेच्छनरेन्द्रो विपदमसह्यां गां नयति स्म व्यपगतबुद्धिः। दोषमशेषं व्रजति समस्तो मूर्खमुपेतः स्फुटमनिवार्यम् ॥८६ ८२) १. देयमाना। २. क गौः । ३. निःकासिता; क तिरस्कृता। ४. निरर्थकम् । ८३) १. विद्यमानम् । २. क पाषाणे । ८४) १. समूहम् । २. न विचारयति । ३. प्राप्नोति । ८५) १. नष्ट। उस मूर्ख म्लेच्छने दूध देनेवाली उत्तम गायको व्वर्थ ही निकलवा दिया। ठीक हैअज्ञानी जनके हाथमें आया हुआ महान् प्रयोजनको सिद्ध करनेवाला रत्न व्यर्थ ही जाता है ॥ ८२ ॥ ___ गाय अपने पासमें स्थित निर्मल दूधको प्रक्रिया ( नियम ) के बिना नहीं दिया करती है। ठीक है-पत्थरमें अवस्थित सोना क्रियाके बिना प्रकट अवस्थाको प्राप्त नहीं हुआ करता है ॥८॥ __ यह कार्यसमूह किस प्रकारसे सिद्ध हो सकता है तथा इसके सिद्ध करने में किस प्रकारसे हानि और किस प्रकारसे वृद्धि हो सकती है, इस प्रकारका जो विचार नहीं करता है वह दोनों ही लोकोंमें निरन्तर दुखको प्राप्त होता है ।।८४।। ____ जो अधम मनुष्य अभिमानमें चूर होकर मनमें श्रेष्ठ विचार नहीं करता है वह उस म्लेच्छके समान गर्वसे रहित होता हुआ अपने कार्यको नष्ट करता है। ऐसे मनुष्यका विद्वान् परित्याग किया करते हैं ।।८५।। उस बुद्धिहीन (मूर्ख ) म्लेच्छ राजाने गायको असह्य पीड़ा पहुँचायी। ठीक है जो जन मूर्खकी संगति करते हैं वे सब प्रकटमें उन समस्त दोषोंको प्राप्त होते हैं जिनका किसी भी प्रकारसे निवारण नहीं किया जा सकता है ।।८६।। ८२) अ ब सुधा for मुधा; अ ब महार्थं । ८४) ब क ड इ कथं विवृद्धिम् । ८६) बमसह्यामानयति....मूर्खमपेतः....मविचार्यम्, इ °वार्यः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001425
Book TitleDharmapariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages409
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & religion
File Size24 MB
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