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________________ ur अमितगतिविरचिता गृहीत्वा पुष्कलं द्रव्यं व्रजावो ऽन्यत्र सज्जन । क्रीडावः स्वेच्छया हृद्यं भुञ्जानौ सुरतामृतम् ॥४१ कुर्वहे सफलं नृत्वं दुरवाएं ' मनोरमम् । निविशव रसं सारं तारुण्यस्यास्य गच्छतः ॥४२ विमुच्य व्याकुलीभावं त्वमानय शवद्वयम् । करोमि निर्गमोपायमलक्ष्य मखिलेर्जनैः ॥४३ प्रपेदे से वचस्तस्या निःशेषं हृष्टमानसः । जायन्ते नेदृशे कार्ये दुःप्रबोधा हि कामिनः ॥४४ after त्रियामास गत्वा मृतकद्वयम् । अभ्यर्थितो नरः स्त्रीभिः कुरुते कि न साहसम् ॥४५ एकं सा मृतक द्वारे गृहस्याभ्यन्तरे परम् । निक्षिप्य द्रव्यमादाय ज्वालयामास मन्दिरम् ॥४६ ४२) १. क दुःप्राप्यम् । २. गृही [ ह्वी ] वः; भुञ्जावहे । ४३) १. क मृतक द्वयम् । ४४) १. अङ्गीकृतवान् । २. क यज्ञदत्तः । ३. क यज्ञदत्तायाः । ४५) १. रात्रौ । हे सज्जन ! हम दोनों बहुतसे धनको लेकर यहाँसे दूसरे स्थानपर चलें और वहाँ मनोहर विषयभोगरूप अमृतको भोगते हुए इच्छानुसार क्रीड़ा करें ||४१ ॥ यह जो यौवन जा रहा है उसके श्रेष्ठ आनन्दका उपभोग करते हुए हम दोनों इस दुर्लभ व मनोहर मनुष्य जन्मको सफल करें ॥४२॥ तुम चिन्ताको छोड़कर दो शवों ( मुर्दा शरीरों ) को ले आओ। फिर मैं यहाँसे निकलनेका वह उपाय करती हूँ जिससे समस्त जन नहीं जान सकेंगे ||४३|| इसपर बटुकने हर्षितचित्त होकर उस यज्ञाके समस्त कथनको स्वीकार कर लिया । ठीक है - कामीजन ऐसे कार्यमें दूसरोंकी शिक्षा की अपेक्षा नहीं करते हैं - वे ऐसे कार्य के विषयमें दुःप्रबोध नहीं हुआ करते हैं - ऐसे कार्यको वे बहुत सरलतासे समझ जाते हैं ||४४|| तत्पश्चात् वह रात्रिमें जाकर दो मृत शरीरोंको ले आया । ठीक है — स्त्रियों के प्रार्थना करनेपर मनुष्य कौन से साहसको नहीं करता है ? वह उनकी प्रार्थनापर भयानक से भयानक कार्य करने में उद्यत हो जाता है ||४५ ॥ - तब यज्ञाने उनमें से एक मृत शरीरको द्वारपर और दूसरेको घरके भीतर रखकर सब धनको ले लिया और उस घर में आग लगा दी ||४६ || ४१) अ ब सज्जनः; क सज्जनैः । ४४) ब तुष्टमानसः । Jain Education International ४२ ) व निर्विशामो ; क तारुण्यस्यावगच्छतः । ४३) व विमुंच । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001425
Book TitleDharmapariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages409
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & religion
File Size24 MB
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