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________________ गा० २२ ] उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए सामित्तं ७९ ९६. हस्स-रह- अरह - सोगाणं णिरंतरबंधेण विणा कथं कम्मट्ठिदिसंचओ लब्भदे ? ण, पडिवक्खपयडीए बद्धदव्वस्स वि अप्पिदपयडीए बज्झमाणियाए उवरि संकंतिदंसणादो | हस्स-रदि-भय- दुगुंछाणं णेरइयचरिमसमयं मोत्तूण आवलियअपुव्वखवगम्मि उक्कस्तसामित्तं होदि, उदए गलमाणदव्वं पेक्खिदूण वोच्छिण्णबंधमोहपयडीहिंतो गुणसंकमेण दुक्कमाणदव्वस्स असंखेजगुणत्तुवलंभादो त्ति । ण, सम्मत्तप्पायणे संजमे अणंताणुबंधिचउक्कविसंजोयणाए दंसणमोहणीयक्खवणाए गुणसेटिकमेण गलिददव्वस्स आवलियकालब्भंतरे गुणसंकमेण संकंतदव्वदो असंखेज्ज गुणत्तुवलंभादो । तदसंखेजगुणत्तं कत्तो उवलब्भदे ? रइ यचरिमसमए उकस्ससामित्त परूवणण्णहाणुववत्तीदो । गुणसंकमभागहारादो ओकड्डणभागहारो असंखे० गुणो । ओकडिददव्वस्स वि असंखे० भागो गुणसेढीए णिसिंचदि तेण गलिददव्वादो गुणसंकमेण दुक्कमाणदव्वमसंखेजगुणं ति ? ण, ओकड्डणभागहारादो सव्वे गुणसंकमभागहारा असंखें ० गुणहीणा त्ति नियमाभावेण ९ ९६. शंका — हास्य, रति, अरति और शोक प्रकृतियाँ निरन्तर बन्धी नहीं हैं । अतः निरन्तर बन्धके बिना इनका कर्मस्थितिप्रमाण साय कैसे हो सकता है ? समाधान नहीं, क्योंकि प्रतिपक्ष प्रकृतिके बद्ध द्रव्यका भी विवक्षित प्रकृतिका बन्ध होते समय उसमें सक्रमण देखा जाता है ? शंका- हास्य, रति, भय और जुगुप्साका उत्कृष्ट स्वामित्व नारकी के अन्तिम समयमें न होकर क्षपक अपूर्वकरणकी आवलिमें होता है, क्योंकि क्षपक अपूर्वकरण में उक्त प्रकृतियोंका उदयके द्वारा जितना द्रव्य गलता है, उससे बन्धसे विच्छिन्न होनेवाली मोहकर्मकी प्रकृतियों का गुणसंक्रमके द्वारा जो द्रव्य इन प्रकृतियोंमें आकर मिलता है, वह द्रव्य असं ख्यातगुणा होता है ? समाधान — नहीं, क्योंकि सम्यक्त्वकी उत्पत्तिके समय, संयम में, अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी विस' योजना में और दर्शनमोहकी क्षपणामें गुणश्रेणिके क्रमसे जो द्रव्य गलता है वह द्रव्य, एक आवलिकालके अन्दर गुणस क्रमके द्वारा संक्रान्त होनेवाले द्रव्यसे असंख्यातगुणा पाया जाता है । अर्थात् स ंक्रान्त द्रव्यसे निर्जराको प्राप्त होनेवाला द्रव्य असं ख्यातगुणा होता है । अतः क्षपक अपूर्वकरणमें हास्यादिकका उत्कृष्ट संचय नहीं बन सकता । शंका-संक्रान्त द्रव्यसे गलित द्रव्य असं ख्यातगुणा है यह किस प्रमाणसे मालूम होता है ? समाधान-यदि ऐसा न होता तो नारकीके अन्तिम समय में उत्कृष्ट स्वामित्वको न बतलाते । शंका — गुणसक्रम भागहार से अपकर्षण भागहार अस' ख्यातगुणा है, क्योंकि अपकर्षित द्रव्यके भी असंख्यातवें भागका गुणश्रेणिमें निक्षेप होता है । अतः क्षपक अपूर्वकरणमें गलनेवाले द्रव्यसे गणस क्रमके द्वारा प्राप्त होनेवाला द्रव्य असं ख्यातगुणा होता है ? समाधान — नहीं, क्योंकि अपकर्षण भागहारसे सब गुणस क्रम भागहार अख्यातगुणे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001412
Book TitleKasaypahudam Part 06
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1958
Total Pages404
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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