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________________ समुत्कीर्तन के दो भेद उत्कृष्ट समुत्कीर्तना जघन्य समुत्कीर्तना स्वामित्वके दो भेद उत्कृष्ट स्वामित्व जघन्य स्वामित्व अल्पबहुत्व के दो भेद उत्कृष्ट अल्पबहुत्व जघन्य अल्पवहुत्त्र वृद्धिविभक्ति वृद्धिविभक्तिके १३ अनुयोगद्वार समुत्कीर्तना स्वामित्व काल अन्तर नाना जीवों की अपेक्षा भङ्गविचय भागाभाग परिमाण क्षेत्र स्पर्शन काल अन्तर भाव ( २ ) जीवभागाभागको स्थगित कर पहले प्रदेशभागाभाग कहनेकी प्रतिज्ञा प्रदेशभागाभाग के दो भेद Jain Education International ३६ ३६ ३६ ३६ ३६ ४५ ४६ ४६ ४७ ४८ ४९ अल्पबहुत्व ४९ ४९ स्थानप्ररूपणा के कथन करनेकी सूचना उत्तरप्रकृतिप्रदेशविभक्ति ५० - ३९२ उत्तरप्रकृतिप्रदेशविभक्तिके २३ अनुयोग- २३ द्वारोंके साथ अन्य अनुयोगद्वारोंकी सूचना ५० भादिके अन्य अनुयोगद्वारोंको छोड़कर चूर्णिसूत्रों में स्वामित्व के कहनेका कारण भागाभाग के दो भेद ४० ४१ चूर्णिसूत्र के अनुसार मिध्यात्वका उत्कृष्ट स्वामित्व ४१ ४१ बारह कषाय और छह नोकषायोंका उत्कृष्ट स्वामित्व ४१-४९ ४१ ४१ ४१ नपुंसक वेदका उत्कृष्ट स्वामित्व स्त्रीवेदका उत्कृष्ट स्वामित्व ४१ पुरुषवेदका उत्कृष्ट स्वामित्व ४३ ४४ ४४ उत्कृष्ट प्रदेशभागाभाग जघन्य प्रदेशभागाभाग सर्व नोसर्वप्रदेशविभक्ति उत्कृष्ट - अनुत्कृष्टि प्रदेशविभक्ति जघन्य - अजघन्य प्रदेश विभक्ति सादि -आदि प्रदेशविभक्ति ५० ५० ५० ५० सम्यग्मिध्यात्वका उत्कृष्ट स्वामित्व सम्यक्त्वका उत्कृष्ट स्वामित्व क्रोधसंज्वलनका उत्कृष्ट स्वामित्व मान संज्वलनका उत्कृष्ट स्वामित्व माया संज्वलनका उत्कृष्ट स्वामित्व लोभ संज्वलनका उत्कृष्ट स्वामित्व उच्चारणा के अनुसार २८ प्रकृतियोंका उत्कृष्ट स्वामित्व चूर्णिसूत्रोंके अनुसार मिथ्यात्वका जधन्य स्वामित्व सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य स्वामित्व सम्यक्त्वका जघन्य स्वामित्व आठ कषायों का जघन्य स्वामित्व अनन्तानुबन्धीका जघन्य स्वामित्व नपुंसकवेदका जघन्य स्वामित्व स्त्रीवेदका जघन्य स्वामित्व पुरुषवेदका जघन्य स्वामित्व क्रोधसंज्वलनका जघन्य स्वामित्व मान-माया संज्वलनका जघन्य स्वमित्व लोभसंज्वलनका जघन्य स्वामित्व छह नोकषायोंका जघन्य स्वामित्व उच्चारणाके अनुसार जघन्य स्वामित्व For Private & Personal Use Only ५० ६४ ७० ७० ७० ७० ७२ ७६ ८१ ८८ ९१ ९९ १०४ ११० ११३ ११४ ११४ ११४ १२४ २०२ २४४ २४९ २५६ २६७ २९१ २९१ ३७७ ३८२ ३८३ ३८५ ३८६ www.jainelibrary.org
SR No.001412
Book TitleKasaypahudam Part 06
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1958
Total Pages404
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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