SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 75
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ पदेसविहत्ती ५ ८०. जहण्णए पयदं। दुविहो णि०-ओघेण आदे० । ओघेण मोह० २८ पयडीणं सव्वजहण्णदव्वं घेत्तूण बुद्धीए एगपुंजं करिय तदो एदमणंतखंडं कादूण एगखंडं पुध द्वविय सेसमणंताभागमेत्तदव्वं घेत्तूण तं संखे०खंडं कादूण तत्थेयखंडं पि पुध दृविय सेससंखेजाभागमेत्तदव्वादो पुणरवि संखेजखंडाणि कादूणेयखंडमवणिय सेसबहुभागदव्वमावलि० असंखे०भागेण खंडियण तत्थेयखंडमवणिय सेसदव्वं सरिसपंचपुजे कादूण तत्थ विदियवारमवणिदसंखे०भागमेत्तदव्वं सरिसतिण्णिभागे काउणेगेगभागं पढम-विदिय-तदियपुंजेसु पक्खिविय पुणो आवलि० असंखे भागं विरलिय पुव्वमवणिदमसंखे०भागमेत्तदव्वं समपविभागेण दादूण तत्थ बहुभागे घेत्तूण पढमपुजे पक्खित्ते लोभसंज०भागो होदि। पुणो सेसेगरूवधरिदं पुव्वविहाणेण दादण तत्थेगरूवधरिदं मोत्तूण सेससव्वरूवधरिदाणि घेत्तृण विदियपुंजे पक्खित्ते भयभागो होदि । पुणो वि सेसेगखंडं पुव्वविहाणेण दादूण तत्थेगरूवधरिदपरिवजणेण सेस मिलाकर इनका भाग प्राप्त करना चाहिये । हस्य और रतिका द्रव्य जो अलग स्थापित कर आये थे उसका बटवारा भी मूलमें बतलाई गई विधिके अनुसार कर लेना चाहिये । इस प्रकार भागाभाग करने पर नौ नोकषायोंमें किस क्रमसे भागाभाग प्राप्त होता है तथा मोहनीयकी सब प्रकृतियों में किस क्रमसे भागाभाग प्राप्त होता है इसका उल्लेख मूलमें किया ही है। इस प्रकार सामान्य नारकियोंमें प्रत्येक प्रकृतिको जिस क्रमसे द्रव्य प्राप्त होता है वह क्रम प्रथम पृथिवी आदि कुछ मार्गणाओंमें अविकल घट जाता है। दूसरीसे लेकर छठी पृथिवी तकके नारकी अदि कछ मार्गणाएँ हैं जिनमें यह क्रम अविकल बन जाता है पर कुछ विशेषता है जिसका उल्लेख मूलमें किया ही है। इसी प्रकार अनाहारक मागेणा तक जहाँ जो प्रक्रिया सम्भव हो उसके अनुसार भागाभाग जान लेना चाहिये । ६८०. अब जघन्यसे प्रयोजन है । निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मोहनीय कर्मकी अट्ठाईस प्रकृतियोंके सब जघन्य द्रव्यको लेकर बुद्धिके द्वारा उस द्रव्यका एक पुंज करो। पुनः उसके अनन्त खण्ड करके उनमें से एक खण्डको पृथक् स्थापित करो और शेष अनन्त खण्डोंके द्रव्यको लेकर उस द्रव्यके संख्यात खण्ड करो । उनमसे एक खण्डको पृथक स्थापित करके बाकी बचे संख्यात खण्डोंके द्रव्यके फिर संख्यात खण्ड करो और एक खण्डको उसमेंसे घटाकर शेष बहुभाग द्रव्यमें आवलिके असंख्यातवें भागसे भाग दो। लब्ध एक भागप्रमाण द्रव्यको उसमंसे घटाकर शंष द्रव्यक समान पांच भाग करो। दूसरी बार अलग स्थापित किये गये संख्यातवें भागप्रमाण द्रव्यके तीन समान भाग करके पांच समान भागोंमें से पहले, दूसरे और तीसरे भाग में एक एक भांगको मिला दो। फिर आवलिके असंख्यातवें भागका विरलन करके पहले घटाकर अलग स्थापित किये हुए असंख्यातवें भागप्रमाण द्रव्यक समान भाग करके उस पर दे दो। उन भागोंमेंसे बहु भाग द्रव्यको लेकर पाँच भागोंमें से पहले भागमें जोड़ने पर लोभ संज्वलनका भाग होता है। शेष बचे एक भागके समान भाग करके पूर्व कहे विधानके अनुसार विरलित राशि पर एक एक भागको दो। उनमेंसे भी एक भागको छोड़कर शेष सब भागोंको लेकर पाँच भागोंमेंसे दूसरे भागमें जोड़ देने पर भयका भाग होता है। बाकी बचे एक भागके समान भाग करके पूर्व विधान के अनुसार विरलित राशि पर एक एक भाग दो । उनमेंसे एक भागको छोड़कर शेष सब भागोंको एकत्र करके पाँच भागोंमेंसे तीसरे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001412
Book TitleKasaypahudam Part 06
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1958
Total Pages404
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy