SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जयधवलाप्सहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ पुव्वमवणिददव्वमाणेदूण पक्खित्ते रदिभागो होदि । इयरो वि हस्सभागो होदि । एत्थ हस्समादि कादूण जाव पुरिसवेदो त्ति ताव सत्थाणभागाभागालावं भणियूण तदो सव्वसमासालावं वत्तइस्सामो। तं जहा-सम्मामि भागो थोवो। अपञ्चक्खाणमाणभागो असंखे०गुणो। कोधभागो विसेसाहिओ। मायामागो विसे० । लोभभागो विसे० । पञ्चक्खाणमाणभागो विसे० । कोधभागो विसे० । मायाभागो विसे० । लोभ भागो विसे० । अणंताणु०माणभागो विसे० । कोधभागो विसे० । मायाभागो विसे० । लोभभागो विसे० । सम्मत्तभागो विसे० । मिच्छत्तभागो विसे० । हस्सभागो अणंतगुणो। रदिभागो विसे० । इत्थिवेदभागो संखे०गुणो। सोगभागो विसे० । अरदिभागो विसे० । णqसयवेदभागो विसे० । दुगुंछाभागो विसे० । भयभागो विसे० । पुरिसवेदभागो विसे० । माणसंजलणभागो विसे० । कोधसंज०भागो विसे । मायासंज०भागो विसे० । लोभसंज०भागो विसे० । एत्थ भागाभागपरूवणावसरे अप्पाबहुआलावो असंबद्धो त्ति णाणादरणिज्जो, भागाभागविसयणिण्णयजणणट्टमेव परूविजमाणस्स तदालावस्स सुसंबद्धत्तदंसणादो। एवं पढमपुढवि०-तिरिक्खतिय-देवा सोहम्मादि जाव सव्वट्ठा त्ति । एवं विदियादिछपढवि-पंचिंतिरि०जोणिणी-पंचि०तिरि०अपज०-मणुसभाग करो । उनमेंसे एक भागमें पहले घटाये हुए एक भाग द्रव्यको लेकर जोड़ने पर रतिका भाग होता है और दूसरा भाग हास्यका होता है। यहाँ हास्यसे लेकर पुरुषवेद पर्यन्त स्वस्थान भागाभागका अलाप कहकर अब संक्षेपसे सब अलापोंको कहेंगे। वह इस प्रकार है-सम्यग्मिथ्यात्वका भाग थोड़ा है । उससे अप्रत्याख्यानावरणमानका भाग असंख्यातगुणा है। उससे क्रोधका भाग विशेष अधिक है। उससे मायाका भाग विशेष अधिक है। उससे लोभका भाग विशेष अधिक है। उससे प्रत्याख्यानावरणमोनका भाग विशेष अधिक है। उससे क्रोधका भाग विशेष अधिक है। उससे मायाका भाग विशेष अधिक है। उससे लोभका भाग विशेष अधिक है। उससे अनन्तानुबन्धीमानका भाग विशेष अधिक है। उससे क्रोधका भाग विशेष अधिक है। उससे मायाका भाग विशेष अधिक है। उससे लोभका भाग विशेष अधिक है। उससे सम्यक्त्वका भाग विशेष अधिक है। उससे मिथ्यात्वका भाग विशेष अधिक है। उससे हास्यका भाग अनन्तगुणा है। उससे रतिका भाग विशेष अधिक है। उससे स्त्रीवेदका भाग संख्यातगुणा है। उससे शोकका भाग विशेष अधिक है। उससे अरतिका भाग विशेष अधिक है। उससे नपुंसकवेदका भाग विशेष अधिक है। उससे जुगुप्साका भाग विशेष अधिक है। उससे भयका भाग विशेष अधिक है। उससे पुरुषवेदका भाग विशेष अधिक है। उससे मानसंज्वलनका भाग विशेष अधिक है। उससे क्रोधसंज्वलनका भाग विशेष अधिक है। उससे माया संज्वलनका भाग विशेष अधिक है। उससे लोभ संज्वलनका भाग विशेष अधिक है। इस भागाभागके कथनके अवसर पर अल्प बहत्वका कथन करना असम्बद्ध है यह मानकर उसका अनादर नहीं करना चाहिये, क्योंकि भागाभागविषयक निर्णयके करनेके लिए ही अल्पबहुत्वविषयक आलाप कहा गया है, अतः वह सुसम्बद्ध है। इसी प्रकार पहली पृथिवी, सामान्य तिर्यश्च, पञ्चेन्द्रियतिर्यश्च, पञ्चेन्द्रियतियश्चपर्याप्त, सामान्य देव और सौधर्म स्वर्ग से लेकर सवर्थिसिद्धि तकके देवोंमें जानना चाहिए। इसी प्रकार दूसरी से लेकर छ पृथिवियोंमें पञ्चेन्द्रियतियश्चयोनिनी, पञ्चेन्द्रियतिर्यश्चअपर्याप्त, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001412
Book TitleKasaypahudam Part 06
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1958
Total Pages404
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy