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________________ गा० २२] उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए भागाभागो तस्सुवरि पुव्वमवणिदभाग समपविभागण दादूण तत्थेगरूवधरिदं मोत्तूण सेससव्वरूवधरिदाणि घेत्तूण पढमपुंजे पक्खित्ते लोभसंजल०भागो होदि । सेसेगरूवधरिदमवद्विदविरलणाए उवरि पुणो वि समखंडं करिय दादूण तत्थेगरूवधरिदपरिच्चागेण सेससव्वरूवधरिदाणि घेत्तूण विदियपुंजे पक्खित्ते मायासंज०भागो होदि। पुणो सेसेगरूवधरिदमव हिदविरलणाए पुव्वविहाणेण दादूण तेणेव कमेण घेत्तूण तदियपुंजे पक्खित्ते कोहसंजलणभागो होदि। सेसेगरूवधरिदं घेत्तूण चउत्थपुंजे पक्खित्ते माणसंजल भागो होदि। एत्थालावो भण्णदे—माणभागो थोवो । कोहभागो विसेसाहिओ । मायामागो विसे० । लोभभागो विसे । अधवा कसायसव्वदव्वं सरिसचत्तारि भागेकादण पुव्वविहाणेणावलि० असंखे०भागं परिवाडीए विसेसाहियं करिय पढम-विदिय-तदियपुंजेसु भागं घेत्तण चउत्थपुंजे तम्मि भागलद्धे पक्खित्ते लोभसंजल भागो होदि। हेट्ठिमा वि विलोमकमेण माया-कोह-माणसंजलणाणं भागा होति । एत्थ वि सो चेवालावो कायव्वो। एदं च सत्थाणगुणिदकमंसियमस्सिऊण भणिदं, खवगसेढीए अक्कमेण संजलणाणमुक्कस्सदव्वाणुवलंभादो। किं कारणं । ख वगसेढीए णोकसायसव्वदव्वे कोहसंजलणम्मि पक्खित्ते एक भागके समान विभाग करके स्थापित करो। उनमेंसे एक विरलित रूप पर स्थापित किये हुए भागको छोड़कर बाकीके विरलित रूपों पर स्थापित किये हुए सब भागोंको एकत्र करके पहले पुजमें मिला देने पर संज्वलन लोभका भाग होता है । शेष एक विरलनके प्रति प्राप्त द्रव्य को फिर भी अवस्थित विरलनके ऊपर समान खण्ड करके दो। उनमें से एक विरलित रूप पर दिये गये भागको छोड़कर शेष सब विरलित रूपों पर दिये गये भागोंको एकत्र करके दूसरे पजमें मिला देने पर संज्वलन मायाका भाग होता है। पनः शेष एक विरलन अकके प्रति प्राप्त द्रव्यको अवस्थित विरलन राशिके ऊपर पहले कहे गये विधानके अनुसार देकर उसी क्रमसे एक भागको छोड़ कर और शेष बचे सब भागोंको एकत्र करके तीसरे पुजमें मिला देने पर संज्वलन क्रोधका भाग होता है। शेष एक विरलन अंकके प्रति प्राप्त हुए द्रव्यको लेकर चौथे पुजमें मिला देनेपर संज्वलन मानका भाग होता है । यहाँ आलाप कहते हैं। मानका भाग थोड़ा है। उससे क्रोधका भाग विशेष अधिक है। उससे मायाका भाग विशेष अधिक है। उससे लोभका भाग विशेष अधिक है। अथवा कषायके सब द्रव्यके समान चार भाग करके पूर्व विधानके अनुसार आवलिके असंख्यातवें भागको क्रमानुसार विशेष अधिक करके पहले, दूसरे और तीसरे पुजमें भाग देकर उस लब्ध भागको चौथे पुंजमें मिला देने पर संज्वलन लोभका भाग होता है। नीचेके भी भाग विलोमक्रमसे संज्वलन माया, संज्वलन क्रोध और संज्वलन मानके भाग होते हैं । यहाँ पर भी वही आलाप करना चाहिये । यह विभाग स्वस्थान गुणितकर्मा शिकको लेकर कहा है, क्योंकि क्षपकश्रेणीमें एक साथ संज्वलन कषायोंका उत्कृष्ट द्रव्य नहीं पाया जाता है। शंक-क्षपक श्रेणीमें संज्वलन कषायोंका उत्कृष्ट द्रव्य एक साथ क्यों नहीं पाया जाता ? समाधान-क्षपकश्रेणीमें नोकषायके सब द्रव्यका संज्वलन क्रोधमें प्रक्षेप कर देने पर संज्वलन क्रोधका द्रव्य होता है। क्रोध संज्वलनके द्रव्यका मान संज्वलनमें प्रक्षेपकर देने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001412
Book TitleKasaypahudam Part 06
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1958
Total Pages404
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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