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________________ जयधवलासहिचे फसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ बहुखंडेसु चउत्थपुंजे पक्खित्तेसु भयभागो होदि । पुणो सेसेगरूवधरिदे पंचमपुंजे पक्खित्ते दुगुंछाभागो होइ। तदो एत्थेसो आलावो कायव्वो-सव्वत्थोवो दुगुंछाभागो। भयभागो विसेसाहिओ । हस्स-सोगभागो विसे० । रदि-अरदिभागो विसे० । वेदभागो विसेसाहिओ ति। ___ ७४. अधवा णोकसायसयलदव्वं घेत्तूण पंचसमपुंजे कादूण पुणो पढमपुजम्मि आवलि ० असंखे भागेण खंडेदूणेयखंडमवणिय पुध द्ववेयव्वं । पुणो एदं चेव भागहारं जहाकम विसेसाहियं कादूण विदिय-तदिय-चउत्थपुंजेसु भागं घेत्तूण पुणो एवं गहिदसब्वदव्वे पंचमपुंजे' पक्खित्ते वेदभागो होदि । हेट्ठिमा च जहाकम दुगुंछा-भय-हस्ससोग-रदि-अरदीणं भागा होति त्ति वत्तव्वं । एत्थ वि सो चेवालावो कायव्वो, विसेसाभावादो। चौथे पुंजमें जोड़ देने पर भयनोकषायका भाग होता है। फिर शेष एक विरलन कके प्रति प्राप्त हुए द्रव्यको पाँचवें पुंजमें जोड़ देने पर जुगुप्साका भाग होता है। अतः यहां ऐसा आलाप करना चाहिए-जुगुप्साका भाग सबसे थोड़ा है। उससे भयका भाग विशेष अधिक है। उससे हास्य-शोकका भाग विशेष अधिक है। उससे रति-अरतिका भाग विशेष अधिक है और उससे वेदका भाग विशेष अधिक है। ६७४. अथवा, नोकषायके समस्त द्रव्यको लेकर उसके पांच समान पुञ्ज करो। फिर पहले पुजमें अवलिके असंख्यातवें भागसे भाग देकर एक खण्डको घटाकर पृथक् स्थापित करो। पुनः इसी भागहारको क्रमानुसार विशेष अधिक विशेष अधिक करके उससे दूसरे, तीसरे और चौथे पुजमें भाग देकर इस प्रकार गृहीत सब द्रव्यको पांचवें पुजमें जोड़ देने पर वेद का भाग होता है और नीचेके भाग क्रमशः जुगुप्सा, भय, हास्य-शोक और रति-अरतिके भाग होते हैं ऐसा कहना चाहिये। यहां पर भी वही आलाप कहना चाहिये, क्योंकि दोनों में कोई भेद नहीं है। विशेषार्थ-मोहनीयकी उत्तरप्रकृतियों में भागाभागके दो भेद करके पहले प्रदेश भागोभागका कथन किया है। प्रदेशभागाभागके द्वारा यह बतलाया जाता है कि उत्तर प्रकृतियोंमें किस प्रकृतिको कितना द्रव्य मिलता है । अर्थात् प्रति समय बंधनेवाले समय प्रबद्धमेंसे मोहनीयको जो भाग मिलता है वह उसकी उत्तरप्रकृतियोंमें तत्काल विभाजित हो जाता है । इस प्रकार संचित होते होते मोहनीयकी उत्तर प्रकृतियोंमें जिस क्रमसे संचित द्रव्य रहता है उसका विभागक्रम यहाँ बतलाया है। चूंकि इस ग्रन्थमें प्रकृति आदि सभी विभक्तियोंका कथन सत्तामें स्थित द्रव्यको लेकर ही किया है, अन्यथा बध्यमान समयप्रबद्धका विभाग तो तत्काल हो जाता है जैसा कि पहले हमने लिखा है । विभागका जो क्रम बतलाया है उसका खुलासा इस प्रकार है-मोहनीयकर्मका जो संचित द्रव्य है उसमें अनन्तका भाग दो। एक भागप्रमाण सर्वघाति द्रव्य होता है और शेष बहुभागप्रमाण द्रव्य देशघाती होता है। एक भागप्रमाण सर्वघाति द्रव्यको अलग रख दो, उसका बँटवारा बादको करेंगे। पहले बहुभागप्रमाण देशघाती द्रव्य लो। उसमें आवलिके असंख्यातवें भागसे भाग दो। लब्ध एक भागको जुदा रखकर शेष बहभागके दो समान भाग करो। उन दो भागोंमेंसे एक भागमें अलग रखे आवलिके असंख्यातवें भागका भाग देकर बहुभागको मिला दो। यह भाग कषायका होता है, १. ता प्रतौ 'गहिदसव्वपुजे पंचपुजे' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001412
Book TitleKasaypahudam Part 06
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1958
Total Pages404
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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