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____जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ ६६२. णाणाजीवेहि भंगविचयाणु० दुविहो णिद्देसो-ओघेण आदेसे० । ओघेण मोह. असंखे भागवहि-हा०-अवढि० णियमा अत्थि । एवं तिरिक्खा० । आदेसे० णेरइय० मोह० असंखे०भागवड्डि-हा० णियमा अस्थि । सिया एदे च अवद्विदोच। सिया एदे च अवट्टिदा च । एवं सव्वणिरय-सव्वपंचिंदियतिरिक्ख-मणुसतिय-देवा भवणादि जाव सव्वहा त्ति । मणुसअपज. मोह० सव्वपदा भयणिज्जा । एवं जाव अणाहारि त्ति ।
६६३ भागाभागाणुगमेण' दुविहो णि०-ओघेण आदेसे० । ओघेण मोह० अवट्टि० सव्वजी० केवडिओ भागो १ असंखे०भागो। असंखे०भागवड्डि. सव्वजी० के. ? संखे०भागो। असंखे०भागहा० सव्वजी० केव० भागो ? संखेजा भागा । अधवा
६६२. नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविचयानुगमसे निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मोहनीयको असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थितविभक्तिवाले जीव नियमसे पाये जाते हैं। इसी प्रकार सामान्य तिर्यश्चोंमें जानना चाहिए। आदेशसे नारकियोंमें मोहनीयकी असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातभागहानिवाले जीव नियमसे होते हैं । कदाचित् अनेक जीव हानि और वृद्धिवाले और एक जीव अवस्थितविभक्तिवाला होता है। कदाचित् अनेक जीव हानि और वृद्धिवाले और अनेक जीव अवस्थितविभक्तिवाले होते हैं। इसी प्रकार सब नारकी, सब पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च, तीन प्रकारके मनुष्य, सामान्य देव और भवनवासीसे लेकर सर्वार्थसिद्धितकके देवोंमें जानना चाहिए । मनुष्य अपर्याप्तकोंमें उक्त सब पद विकल्पसे होते हैं। इस प्रकार अनाहारी पर्यन्त जानना चाहिये।
विशेषार्थ-ओघसे तीनों प्रदेशविभक्तिवाडे नाना जीव सदा हैं, अतः असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थितविभक्तिवाले जीव नियमसे हैं यह कहा। सामान्य तिर्यश्चोंमें भी ओघ प्ररूपणा अविकल बन जाती है, इसलिये उनके कथनको ओघके समान कहा। नारकियोंमें असंख्यातभागवद्धि और असंख्यातभागहानि नियमसे हैं । केवल अवस्थित विभक्तिवाले जीव कभी नहीं होते, कभी एक होता है और कभी अनेक होते हैं, इसलिये तीन भंग हो जाते हैं। आगे और भी मार्गणाएँ गिनाई हैं उनमें भी यह व्यवस्था बन जाती है, इसलिये उनमें भी सामान्य नारकियोंके समान तीन भंग कहे हैं। मनुष्य लब्ध्यपर्याप्त यह सान्तर मार्गणा है, अतः इसमें तीनों पद भजनीय हैं । इनके कुल भंग २६ होते हैं। खुलासा अनेक बार किया है उसी प्रकार यहाँ भी कर लेना चाहिये । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक अपने अपने पदोंके अनुसार और सान्तर निरन्तर मार्गणाओंके अनुसार जहाँ जितने भंग संभव हों घटित करके जान लेना चाहिये।
६ ६३. भागाभागानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मोहनीयकी अवस्थितविभक्तिवाले जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? असंख्यातवें भागप्रमाण है । असंख्यातभागवृद्धिवाले जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण है ? संख्यातवें भागप्रमाण हैं। असंख्यातभागहानिवाले जीब सब जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? संख्यात बहुभागप्रमाण हैं । अथवा असंख्यातभागहानिवाले जीव कितने भागप्रमाण हैं ? संख्यातवें भागप्रमाण हैं और
१. ता०आ०प्रत्योः 'भागाभागभंगविचयाणुगमेण' इति पाठः ।
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