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________________ यिपाहुडे ३६८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ अकमेण दुपक्खेउत्तरजोग' गीदे अपुणरुत्तट्ठाणं होदि, दोण्णिचरिमफालियाहि चत्तारिदुचरिमकालियाहि दोतिचरिमफालिविसेसेहि अहियत्तुवलंभादो । संपहि इमं तिण्णिफालिक्खवगमेत्येव दृविय एगफालिक्खवगो पक्खेउत्तरादिकमेण वड्डावेदव्यो । एवं सव्वसंधीओ जाणिय सरिसं करिय ताव वत्तव्वं जाव दुसमयणदोआवलियमेत्तसमयपबद्धा उकस्सजोग पत्ता ति । एवं दोण्हं तिचरिमविसेसहाणाणं परूवणाए पढमपरिवाडी समत्ता। ___४१९. संपहि विदियपरिवाडी उच्चदे । तं जहा—तिण्णिफालिक्खवर्ग दुपक्खेउत्तरजोगणेदण दोफालिक्खवगे पक्खेउत्तरं जोगणीदे अण्णमपुणरुत्तहाणं होदि । एवं जाणिदूण णेदव्वं जाव विदियपरिवाडी समत्ता त्ति । संपहि तदियपरिवाडी उच्चदे । तं जहा-एगफालिट्ठाणेण छप्फालिट्ठाणं सरिसं करिय अकमेण तिण्णिफालिक्खवगे दोफालिक्खवगे च दुपक्खेउत्तरजोग णीदे अण्णमपुणरुत्तट्ठाणं होदि । पुणो एवं जाणिदूण णेदव्वं जाव दुरूऊणधापवत्तभागहारमेत्ततिचरिमविसेसहाणाणं परिवाडीओ गदाओ त्ति । ४२०. संपहि तत्थ सव्वपच्छिमतिचरिमफालिविसेसट्टाणपरिवाडी उच्चदे । तं जहा-सवेदतिचरिमसमए दुचरिमसमए च घोलमाणजहण्णजोगेण बंधिय चरिमसमए दुरूवूणधापवत्तभागहारमेत्तमुवरि चडिदूण हिदजोगेण बंधिय अधियारतिचरिमसमए दो प्रक्षेप अधिक योगको प्राप्त करने पर अपुनरुक्तस्थान होता है, क्योंकि दो चरम फालियाँ, चार द्विचरम फालियाँ और दो त्रिचरम फालिविशेष अधिक पाये जाते हैं। अब इस तीन फालिक्षपकको यहीं पर स्थापित कर एक फालिक्षपकको प्रक्षेप अधिक आदिके क्रमसे बढाना चाहिए। इस प्रकार सब सन्धियोंको जानकर और समान करके दो समय कम दो आवलिमात्र समयप्रबद्धोंके उत्कृष्ट योगको प्राप्त होने तक कथन करना चाहिए। इस प्रकार दो त्रिचरम विशेषस्थानोंकी प्ररूपणा करने पर प्रथम परिपाटी समाप्त हुई। ६४१९. अब द्वितीय परिपाटीका कथन करते हैं। यथा--तीन फालिक्षपकको दो प्रक्षेप अधिक योगको प्राप्त कराकर दो फालिलपकके प्रश्लेप अधिक योगको ; अन्य अपुनरुक्त स्थान होता है। इस प्रकार द्वितीय परिपाटीके समाप्त होने तक जानकर ले जाना चाहिए। अब तृतीय परिपाटीका कथन करते हैं। यथा-एक फालिस्थानके साथ छह फालिस्थानको समान करके अक्रमसे तीन फालिक्षपकके और दो फालिक्षपकके दो प्रक्षेप अधिक योगको प्राप्त करने पर अन्य अपुनरुक्त स्थान होता है। पुनः इस प्रकार जानकर दो रूप कम अधःप्रवृत्तभागहारमात्र त्रिचरम विशेषस्थानांकी परिपाटि योंके जाने तक ले जाना चाहिए। ६४२०. अब वहाँ सबसे अन्तिम त्रिचरम फालिविशेषस्थानपरिपाटीका कथन करते हैं। यथा-सवेदभागके त्रिचरम समयमें और द्विचरम समयमें घोलमान जघन्य योगसे बन्ध करके चरम समयमें दो रूप कम अधःप्रवृत्तभागहारमात्र ऊपर चढ़कर स्थित हुए योगसे बन्ध कर अधिकृत त्रिचरम समयमें स्थित हुआ छह फालिक्षपकस्थान अपुनरुक्त है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001412
Book TitleKasaypahudam Part 06
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1958
Total Pages404
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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