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________________ गा० २२] उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए सामित्त ३४५ चडिदद्धाणमेत्तदुचरिमफालियाहि अहियं होदि । संपहि एदाआ दुचरिमफालीओ' चरिमफालिपमाणेण कीरमाणाओ रूवूणअधापवत्तभागहारेणोवट्टिदचडिदद्धाणमेत्ताओ होति त्ति अद्धजोगादो हेढा एगफालिक्खवगो पुणरवि एत्तियमद्धाणं ओदारेयव्यो । एवमोदारिदे चरिमफालिहाणपमाणं जादं । ३८७. संपहि दोफालिक्खवगो उक्कस्सजोगट्टाणादो रूवूणअधापवत्तभागहारमेत्तजोगहाणाणि हेहा ओदारिय पुणो पक्खेवुत्तरजोगं णेदव्वो, अण्णहा दचरिमफालिपडिबद्धपदेससंतकम्मट्ठाणाणमुप्पत्तीए अभावादो। पुणो एदमेत्थेव ढविय एगफालिक्खवगो पक्खेवुत्तरकमेण वड्डावेदव्यो जात्र उक्कस्सजोगट्ठाणं पत्तो त्ति । एवं वड्डाविदे तिण्णिफालिक्खवगुक्कर पचरिमफालिहाणादो हेढा दुरूवूणअधापवत्तभागहारमेत्तचरिमफालिहाणंतराणि भोत्तण सेसद्वाणंतरेसु सव्वत्थ दचरिमफालिहाणाणि उप्पण्णाणि होति। ३८८. संपहि तिण्णिफालिखवगमस्सिदण दचरिमफालिहाणाणि एत्तियाणि चेव उप्पजंति त्ति एदंर मोत्तूण छप्फालिखवगमस्सिदूण सेसहाणाणं परूवणं कस्सामो। तं जहा-पुचिल्लं तिण्णिफालिट्ठाणं चरिमफालिहाणेण सरिसं करिय एदेण सरिसछप्फालिहाणं वत्तइस्सामो। चरिम-दचरिम-तिचरिमसमएसु तिभागूणुकस्सजोगेण बंधिय अधियारतिचरिमसमए डिदस्स छप्फालिट्ठाणं तिण्णिफालीणमुक्कस्सहाणादो विसेसाहियं, सादिरेयउक्कस्सजोगहाणपक्खेवभागहारमेत्तदचरिमफालीणमहियत्तवहै। अब इन द्विचरम फालियोंको चरम फालिके प्रमाणसे करने पर वे एक कम अधःप्रवृत. भागहारसे भाजित आगे गये हुए अध्वानमात्र होती हैं, इसलिए अर्धयोगसे नीचे एक फालि क्षपकको फिर भी उतना अध्वान उतारना चाहिए । इस प्रकार उतारने पर चरम फालिका प्रमाण हो जाता है। ३८७. अब दोफालि क्षकको उत्कृष्ट योगस्थानसे एक कम अधःप्रवृत्तभागहारमात्र योगस्थान नीचे उतारकर पुनः प्रक्षेप अधिक योगको प्राप्त कराना चाहिये, अन्यथा द्विचरम फालिसे प्रतिबद्ध प्रदेशसत्कर्मस्थानोंकी उत्पत्ति नहीं हो सकती। पुनः इसे यहीं पर स्थापित करके एक फालि क्षपकको उत्कृष्ट योगस्थानके प्राप्त होने तक एक एक प्रक्षेप अधि क्रमसे बढ़ाना चाहिए। इस प्रकार बढ़ाने पर तीन फालि क्षपकके उत्कृष्ट चरम फालिस्थानसे नीचे दो रूप कम अधःप्रवृत्तभागहारमात्र चरम फालिस्थानोंके अन्तरालोंको छोड़कर शेष स्थानोंके अन्तरालोंमें सर्वत्र द्विचरम फालिस्थान उत्पन्न होते हैं। ६३८८. अब तीन फालिक्षपकका आश्रय करके द्विचरम फालिस्थान इतने ही उत्पन्न होते हैं, इसलिए इसे छोड़ कर छह फालिक्षपकका आश्रय लेकर शेष स्थानोंका कथन करते हैं। यथा-पहलेके तीन फालिस्थानको चरम फालिस्थानके समान करके इसके समान छह फालिस्थानको बतलाते हैं। चरम, द्विचरम और त्रिचरम समयमें त्रिभाग कम उत्कृष्ट योगसे बन्ध करके अधिकृत त्रिचरम समयमें जो स्थित है उसके छह फालिस्थान तीन फालियोंके उत्कृष्ट स्थानसे विशेष अधिक होता है, क्योंकि साधिक उत्कृष्ट योगस्थान प्रक्षेप भागहारमात्र 1. प्रा०प्रती 'एदाओ चरिमफालियो' इति पाठः । २. ता०प्रतौ 'उप्पजति एवं' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001412
Book TitleKasaypahudam Part 06
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1958
Total Pages404
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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