SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 344
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गा० २२] उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए सामित्तं ३३३ ति अवणिदे चरिमसमयसवेदस्स दुचरिमफालियाए तिभागेण सह तस्सेव तिचरिमफालियाए वेतिभागाणमहियाणमुवलंभादो। तिभागणुकस्सजोगेणेगजीवस्स णिरंतरतिसु समएम परिणामो विरुज्झदि. त्ति ण पञ्चवद्वेयं, बालजणाणुग्गहह तहापदुप्पायणाए विरोहाभावादो। संपहि एदम्मि अहियदव्वे चरिमफालिपमाणेण कीरमाणे रूवूणअधापयत्तभागहारेणोपट्टिदउक्कस्सजोगहाणपक्खेवभागहारमेत्ताओ सविसेसाओ चरिमफालीओ होति त्ति तिचरिमसमयसवेदो तिभागूणुक्कस्सजोगहाणादो हेट्ठा एत्ति यमेत्तमद्धाणमोदारेदव्वं । एवमोदारिदे पविल्लुक्कस्सतिण्णिफालिदव्वेण एदं छप्फालिदव्वं सरिसं होदि, ओवट्टिदअहियदव्वत्तादो। संपहि इमो चरिमसमयसवेदो पक्खेवत्तरकमेण वड्ढावेदव्वो जाव तिभागृणुक्कस्सजोगं पत्तो त्ति । एवं वड्डाविदे सव्वमंतरं पक्खेवृत्तरकमेण पविट्ठ होदि । संपहि एत्तो उवरिं पि पक्खेवुत्तरकमेण वड्ढावेदव्वो जाव उक्कस्सजोगहाणं पत्तो त्ति । एवं वड्डाविदे तिचरिमसमयसवेदस्स चरिमफालियाए उकस्सजोगहाणपक्खेवभागहारस्स तिभागमेत्ताणि संतकम्मट्ठाणाणि लद्धाणि होति । संपहि सवेदतिचरिमसमए तिभागूणुकस्सजोगण तद्दचरिमसमए उक्कस्सजोगेण चरिमसमए वितिभागूणुकस्सजोगण फालि होती है, इसलिए पहलेकी तीन फालियोंके द्रव्यसे यह द्रव्य समान है, इसलिए अलग कर देने पर चरम समयवर्ती सवेदी जीवके द्विचरम फालिके विभागके साथ उसीके त्रिचरम फालिके दो त्रिभाग अधिक उपलब्ध होते हैं। शंका-तृतीय भाग कम उत्कृष्ट योगसे एक जीवके निरन्तर तीन समयोंमें परिणमन विरोधको प्राप्त होता है ? समाधान-ऐसा निश्चय नहीं करना चाहिए, क्योंकि बाल जनोंके अनुग्रहके लिए उस प्रकारका कथन करने पर कोई विरोध नहीं आता। अब इस अधिक द्रव्यके अन्तिम फालिके प्रमाणसे करने पर एक कम अधःप्रवृत्त भागहारसे भाजित उत्कृष्ट योगस्थानके सविशेष प्रक्षेप भागहारप्रमाण चरम फालियाँ होती हैं, इसलिए त्रिचरम समयवर्ती सवेदी जीवको तृतीय भाग कम उत्कृष्ट योगस्थानसे नीचे इतने मात्र अध्वान उतारना चाहिए। इस प्रकार उतारने पर पहलेके उत्कृष्ट तीन फालियोंके द्रव्यसे यह छह फालियोंका द्रव्य समान होता है, क्योंकि अधिक द्रव्यका अपवर्तन हो गया है। अब इस चरम समयवर्ती सवेदी जीवको एक एक प्रक्षेष अधिकके क्रमसे तृतीय भाग कम उत्कृष्ट योगके प्राप्त होने तक बढ़ाना चाहिए। इस प्रकार बढ़ाने पर सब अन्तर एक एक प्रक्षेप अधिकके क्रमसे प्रविष्ट होता है। अब इसके ऊपर भी एक एक प्रक्षेप अधिकके क्रमसे उत्कृष्ट योगस्थानके प्राप्त होने तक बढाना चाहिए। इस प्रकार बढाने पर त्रिचरम समयवर्ती स जीवके चरम फालिके उत्कृष्ट योगस्थान प्रक्षेप भागहारके त्रिभागप्रमाण सत्कर्मस्थान लब्ध आते हैं। अब सवेदी जीवके त्रिचरम समयमें त्रिभाग कम उत्कृष्ट योगसे, उसके द्विचरम समयमें उत्कृष्ट योगसे तथा चरम समयमें भी त्रिभाग कम उत्कृष्ट योगसे ही पुरुषवेदका बन्ध १. ता प्रतौ 'जोगेणतदुवरिमसमए' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001412
Book TitleKasaypahudam Part 06
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1958
Total Pages404
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy