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________________ २९४ 'जयधवला सहिदे कसा पाहुडे होदि । एदस्त कारणपदुप्पायणढमुत्तरमुत्त कलावं भणदि जइव सहभडारओ । * जं चरिमसमय सवेदेण बद्ध तमवेदस्स विदियाए श्रावलियाए तिचरिमसमयादोत्ति दिस्सदि । दुचरिमसमए अकम्मं होदि । $ ३१३. अवगदव दस्स पढमसमयादो उवरिमआवलियमेत्तकालो अवगदव दस्स पदमावलिया णाम । तत्तो उवरिमआवलियम तकालो तस्सेव विदियावलिया, अवगदवेद संबंधित्तादो । तिस्से विदियावलियाए जाव तिचरिमसमओ त्ति ताव जं चरिमसमयसवेदेण बद्धं कम्मं तं दिस्सदि समयूणदोआवलियाओ मोत्तूण णवकबंधस्स अवहाणाभावादो । तं जहा - अवगदवेदस्स समयूणावलियाए सो समयपबद्धो ण पिल्लेविजदि, बंधावलियकालम्मि तस्स परपयडिसंकंतीए अभावादो । संकमे पारद्धे वि ण समयुणावलियमेत्तकालं णिल्लेविजदि, संकमणावलियाए चरिमसमए तदभावलंभादो | तम्हा अवेदस्स विदियाए आवलियाए तिचरिमसमओ त्ति सो समयबद्धो दिस्सदित्ति जुजदे । तिस्से दुचरिमसमए अकम्मं होदि, चरिमसमयवेदादो गणिमाणे तत्थ संपुण्णदोआवलियाणमुवलंभादो । * जं दुरिमसमय सवेदेण बद्ध तमवेदस्स विदियाए आवलियाए चदुचरिमसमयादोत्ति दिस्सदि । तिचरिमसमए कम्मं होदि । [ पदेसविहत्ती ५ प्रकट करता है । अब इसका कारण बतलानेके लिये यतिवृषभ भट्टारक आगेके सूत्रोंको कहते हैं* अन्तिम समयवर्ती सवेदीने जो कर्म बांधा वह अपगतवेदीके दूसरी आवलिके त्रिचरम समय तक दिखाई देता है और द्विचरम समय में अकर्मभावको प्राप्त होता है । $ ११३. अपगतवेदी के प्रथम समयसे लेकर आगेकी एक आवलिप्रमाण काल अपगतवेद की प्रथमावलि है । और इससे आगेकी दूसरी आवलिप्रमाण काल उसीकी दूसरी आवलि है, क्योंकि इनका सम्बन्ध अपगतवेदसे है । उस दूसरी आवलिके त्रिचरम समय तक अन्तिम समयवर्ती सवेदीके द्वारा बांधा गया कर्म दिखाई देता है, क्योंकि एक समय कम दो आवलिके सिवा और अधिक काल तक विवक्षित नवक समयप्रबद्धका अवस्थान नहीं पाया जाता । खुलासा इस प्रकार है- अपगतवेदीके एक समय कम एक आवलि काल तक वह समयप्रबद्ध निर्लेप नहीं होता अर्थात् तदवस्थ रहता है, क्योंकि बन्धावलि कालमें उसका अन्य प्रकृति में संक्रमण नहीं होता । तथा संक्रमणका प्रारंभ होने पर भी एक समय कम एक आवलि प्रमाण काल में वह निर्लेप नहीं होता, क्योंकि संक्रमणावलिके अन्तिम समय में उसका अभाव पाया जाता है । इसलिये अपगतवेदी की दूसरी आवलिके तीसरे समय तक वह समयप्रबद्ध दिखाई देता है यह कथन बन जाता है । तथा उस दूसरी आवलिके द्विचरम समय में अकर्म भावको प्राप्त होता है, क्योंकि सवेदीके अन्तिम समयसे गिनने पर वहां पूरी दो आवलियां पाई जाती हैं। * उपान्त्य समयवर्ती सवेदीने जो कर्म बांधा वह अपगतवेदीके दूसरी आवलिके चार अन्तिम समय तक दिखाई देता है । त्रिचरम समय में अकर्मपनेको Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001412
Book TitleKasaypahudam Part 06
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1958
Total Pages404
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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