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________________ गा० २२] उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए सामितं २५५ ___ अपच्छिमहिदिखंडयस्स' चरिमसमयजहएणपदमादि कादूण जाववुक्कस्सपदेससंतकम्म ति एदमेगं फय। ____६२५६. दुचरिमादिद्विदिखंडयपडिसेहफलो अपच्छिमहिदिखंडयणिदेसो । तस्स दुचरिमादिफालोणं पडिसेहफलो चरिमसमयणिद्द सो । गुणिदकम्मंसियपडिसेहफलो जहण्णपदणिद्द सो । जहण्णचरिमफालीदो जावट्ठकसायाणमुक्कस्सदव्वं ति एत्थ अंतराभावपदुप्पायणफलो एगफद्दयणिद्द सो । संपहि चरिमफालिजहण्णदव्वं घेत्तण कालपरिहाणिं काऊण द्वाणपरूवणाए कीरमाणाए जहा मिच्छत्तस्स कदा तहा कायव्वा, विसेसाभावादो । णवरि देसूणपुव्वकोडी चेव ओदारेदव्वा, हेहा ओदारणे असंभवादो। संपहि चत्तारि पूरिसे अस्सिदण पंचहि वड्डीहि वड्ढावेदव्वं जाव असंखेजगुणं ति । पुणो चरिमसमयणेरइएण संधाणं करिय ओघुक्कस्सदव्वं ति वड्डाविदे खविदकम्मंसियमस्सिदूण कालपरिहाणीए हाणपरूवणा कदा होदि । एवं गुणिदकम्मसियं पि अस्सिदूण कालपरिहाणीए द्वाणपरूवणा कायव्वा । णवरि एगगोवुच्छाए ऊणं कादणागदो त्ति वत्तव्वं । एवं परूवणाए कदाए गुणिदकम्म सियमस्सिद्ण कालपरिहाणीए अट्ठकसायाणं ढाणपरूवणा कदा होदि । संपहि खविदकम्मंसियमस्सिदण संतकम्मे ओदारिजमाणे मिच्छत्तस्सेव ओदारेदव्वं जाव मिच्छादिहिचरिम * तथा अन्तिम स्थितिकाण्डकके अन्तिम समयवर्ती जघन्य द्रव्यसे लेकर उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्मके प्राप्त होने तक एक स्पर्धक होता है। ६२५६. द्विचरम आदि स्थितकाण्डकोंका निषेध करनेके लिये 'अन्तिम स्थितिकाण्डक' पदका निर्देश किया है । अन्तिम स्थितिकाण्डककी द्विरम आदि फालियोंका निषेध करनेके लिये 'अन्तिम समय' पदका निर्देश किया है । गुणितकर्मा शका निषेध करनेके लिये 'जघन्य' पदका निर्देश किया है । जघन्य अन्तिम फालिसे लेकर आठ कषायोंके उत्कृष्ट द्रव्यके प्राप्त होने तक इस प्रकार यहाँ अन्तरका अभाव दिखलानेके लिये 'एक स्पर्धक' पदका निर्देश किया है। अब अन्तिम फालिके जघन्य द्रव्यकी अपेक्षा कालकी हानि द्वारा स्थानोंका कथन करने पर जिस प्रकार मिथ्यात्वका कथन किया उसी प्रकार आठ कषायोंका कथन करना चाहिये, क्योंकि उससे इसमें कोई विशेषता नहीं है। किन्तु इतनी विशेषता है कि कुछ कम पूर्वकोटि काल हो उतारना चाहिये, इससे और नीचे उतारना सम्भव नहीं है । अब चार परुषोंकी अपेक्षा पाँच वृद्धियोंके द्वारा असंख्यातगणा प्राप्त होने तक बढाना चाहिये। फिर अन्तिम समयवर्ती नारकीसे मिलान करके ओघ उत्कृष्ट द्रव्य तक बढ़ाने पर क्षपितकर्मा शकी अपेक्षा कालकी हानि द्वारा स्थानोंका कथन समाप्त होता है। इसी प्रकार गुणितकर्माशकी अपेक्षा भी कालकी हानिद्वारा स्थानोंका कथन करना चाहिये। इतनी विशेषता है कि एक गोपुच्छा कम करके आया है ऐसा कहना चाहिये । इस प्रकार कथन करने पर गुणितकर्मा शकी अपेक्षा कोलकी हानिद्वारा आठ कषायोंके स्थानोंका कथन समाप्त होता है । अब क्षपितकर्मा शकी अपेक्षा सत्कर्मके उतारने पर मिथ्याददृष्टि के अन्तिम समय २. ता०प्रतौ 'अपच्छिमाडिदिखंडयस्स' इति पाठः ३. ता०मा प्रत्योः -जहण्णपढमादि' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001412
Book TitleKasaypahudam Part 06
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1958
Total Pages404
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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