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________________ गा० २२] उत्तरपय डिपदेसविहन्तीए सामित्तं ट्ठिदेण अण्णेगो उब्व ेल्लणदुचरिमसमयद्विदो सरिसो । एवमोदारेदव्वं जावुब्वेल्लणपढमसमओ ति । $ २३६. संपहि उब्वेल्लणपढमसमए ठाइदूण बड्डाविजमाणे तम्मि चैव समए उब्वेल्लणाए गददव्वमेत्तं त्थिउकसंक्रमेण गददव्वमेत्तं च वड्डावेदव्वं । एवं चड्डिण हिदेण अण्णेगो अधापवत्तचरिमसमयद्विदो सरिसो । संपहि अधापवत्तचरिमसमए डाइदू वड्डाविमा अधापवत्तसंकमेण त्थिउक्कसंक्रमेण च गददव्वमेतं वड्डाव दव्व ं । एवं वड्डिण अण्णेगो अधापवत्तदुचरिमसमपट्टिदो सरिसो । एवमोदारदव्व जाव अधापवत्तपढमसमओ त्ति । २३९ $ २३७. संपहि तत्थ वड्डाविजमाणे अधापवत्तसंकमण त्थिबुकसंक्रमेण च गददव्त्रमेतं वड्डावळे यव्वं । एवं वहिदेण अवरेगो सम्मत्तचरिमसमयट्ठिदो सरिसो । संपहिएदम्मि चरिमसमयसम्मादिडिम्मि वड्डाविजमाणे विज्झादसंकमेण सम्मामिच्छत्तादो सम्मत्तं गच्यमाणदव्वेणूणं मिच्छत्तादो विज्झादसंकमेण सम्मामिच्छत्तं गच्छमाणं Goa' त्थिउक्कसंकमेण सम्मत्तं गच्छमाणदव्वम्मि सोहिय सुद्धसेसमेतं वड्डावेयव्व । सम्मामिच्छत्तादो सम्मत्तं गच्छमाणदव्व पेक्खिदूण मिच्छात्तादो सम्मामिच्छत्तं बढ़ाकर स्थित हुए जीवके समान एक अन्य जीव है जो उद्वेलनाके उपान्त्य समय में स्थित है । इस प्रकार उद्वेलनाके प्रथम समयके प्राप्त होने तक उतारते जाना चाहिये । ६ २३६. अब उद्वेलनाके प्रथम समयमें ठहराकर द्रव्यके बढ़ाने पर उसी समय जितना द्रव्य उद्वेलना द्वारा पर प्रकृतिको प्राप्त हुआ है और जितना द्रव्य स्तिवुक संक्रमण द्वारा पर प्रकृतिको प्राप्त हुआ है उतना द्रव्य एक एक परमाणु कर बढ़ावे । इस प्रकार बढ़ाकर स्थित हुए जीवके समान एक अन्य जीव है जो अधःप्रवृतके अन्तिम समय में स्थित है । अब अधः प्रवृत्तके अन्तिम समय में ठहराकर द्रव्यके बढ़ाने पर अधःप्रवृत्तसंक्रमणद्वारा और स्तिवुकसंक्रमणद्वारा जितना द्रव्य अन्य प्रकृतिमें प्राप्त हुआ है उतना द्रव्य एक-एक परमाणु कर बढ़ावे । इस प्रकार बढ़ाकर स्थित हुए जीवके समान एक अन्य जीव है जो अधःप्रवृत्तके उपान्त्य समय में स्थित है। इस प्रकार अधःप्रवृत्तके प्रथम समय के प्राप्त होने तक उतारना चाहिये । ६ २३७ अब वहां पर द्रव्यके बढाने पर अधःप्रवृत्तसंक्रमणके द्वारा और स्तिवक संक्रमणके द्वारा जितना द्रव्य अन्य प्रकृतिको प्राप्त हुआ है उतना द्रव्य एक एक परमाणु कर बढ़ाना चाहिये । इस प्रकार बढ़ाकर स्थित हुए जीवके समान एक अन्य जीव है जो सम्यक्त्वके अन्तिम समय में स्थित है । अब अन्तिम समय में स्थित इस सम्यग्दृष्टिके द्रव्यके बढ़ाने पर विध्यात संक्रमणके द्वारा सम्यग्मिथ्यात्व के द्रव्यमेंसे सम्यक्त्वको प्राप्त होनेवाले द्रव्यसे कम मिथ्यात्वमेंसे विध्यात संक्रमणके द्वारा सम्यग्मिथ्यात्वको प्राप्त होनेवाले द्रव्यको स्तिवक संक्रमणके द्वारा सम्यक्त्वको प्राप्त होनेवाले द्रव्यमेंसे घटाकर जो द्रव्य शेष रहे उतने द्रव्यको एक-एक परमाणु कर बढ़ावे | शंका-सम्यग्मिथ्यात्व से सम्यक्त्वको प्राप्त होनेवाले द्रव्यकी अपेक्षा मिथ्यात्वसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001412
Book TitleKasaypahudam Part 06
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1958
Total Pages404
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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