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________________ गा० २२] मूलपयडिपदेसविहत्तीए सामित्तं जाव छडि त्ति मोह० उक्क० पदेस० कस्स ? जो गुणिदकम्मंसिओ सत्तमादो पुढवीदो उव्वट्टिदो तिरिक्खेसु उववण्णो तत्थ संखेजाणि अंतोमुहुत्तियतिरिक्खभवग्गहणाणि भमिदूण लहुमेव अप्पप्पणो णेरइएसु उववण्णो तस्स पढमसमयणेरइयस्स उकस्सपदेसविहत्ती। १६. तिरिक्खगदीए तिरिक्खचउक्कम्मि मोह० उक्क० पदेस० कस्स ? जो गुणिदकम्मंसिओ सत्तमादो पुढवीदो उव्वट्टिदो संतो अप्पप्पणो तिरिक्खेसु उववण्णो तस्स पढमसमयउववण्णस्स उक्कस्सिया पदेसविहत्ती। पंचिंदियतिरिक्खअपज० मोह० उक्क० पदेस० कस्स ? जो गुणिदकमंसिओ सत्तमादो पुढवीदों उव्वट्टिदो पंचिंदियतिरिक्खपज्जत्तएसु उववण्णो तत्थ दो-तिण्णिभवग्गहणाणि भमिका पंचिंदियतिरिक्खअपज्जत्तएसु उववण्णो तस्स पढमसमयउववण्णस्स उक्कस्सिया पदेसविहत्ती। एवं मणुस्सचउक-देव-भवणादि जाव सहस्सारो त्ति । ____$ १७. आणदादि जाव णवगेवजा ति मोह० उक्क० पदेस० कस्स ? जो गुणिदकम्मंसिओ सत्तमादो पुढवीदो उव्यट्टिदसमाणो दो-तिण्णिभवग्गहणाणि तिरिक्खेसु उववन्जिय मणुस्सेसु उववण्णो सव्वलहुं जोणिणिक्खमणजम्मणेण जादो अवस्सिओ पृथिवीं में जानना चाहिए। पहलीसे लेकर छठी पृथिवी तकके नारकियोंमें मोहनीयकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति किसके होती है ? जो गुणितकाशवाला जीव सातवीं पृथिवीसे निकलकर तियञ्चोंमें उत्पन्न हुआ। वहाँ अन्तर्मुहूर्तकी आयुवाले तिर्यश्चोंके संख्यात भव ग्रहण करके जल्दी ही अपने अपने योग्य प्रथमादि नरकोंमें उत्पन्न हुआ। प्रथम समयवर्ती उस नारकीके उत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति होती है। विशेषार्थ-यद्यपि मोहनीयकर्मका उत्कृष्ट प्रदेशसंचय सातवें नरकके अन्तिम समयमें होता है। किन्तु यहाँ प्रथमादि नरकोंमें उसे प्राप्त करना है, इसलिये सातवें नरकसे तिर्यश्चोंमें उत्पन्न करावे और अन्तर्मुहूर्तके भीतर जितने भव सम्भव हो उतने भव प्राप्त करावे । अनन्तर जिस नरकमें उत्कृष्ट प्रदेशसंचय प्राप्त करना हो उस नरकमें उत्पन्न करावे । इस प्रकार उत्पन्न होनेके पहले समयमें उस उस नरकमें मोहनीयका उत्कृष्ट प्रदेशसंचय प्राप्त होता है। १६. तिर्यञ्चगतिमें चार प्रकारके तिर्यञ्चोंमें मोहनीयकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति किसके होती है ? गुणितकाशवाला जो जीव सातवीं पृथिवोसे निकलकर अपने अपने योग्य तियञ्चोंमें उत्पन्न हुआ उसके उत्पन्न होनेके प्रथम समयमें उत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति होती है। पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्तकोंमें मोहनीयकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति किसके होती है ? गुणितकर्माशवाला जो जीव सातवीं पृथिवीसे निकलकर पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च पर्याप्तकोंमें उत्पन्न हुआ और वहाँ दो तीन भवग्रहण तक भ्रमण करके पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्तकोंमें उत्पन्न हुआ। उसके उत्पन्न होनेके प्रथम समयमें उत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति होती है। इसी प्रकार चार प्रकारके मनुष्य, सामान्य देव और भवनवासीसे लेकर सहस्रार स्वर्ग तकके देवोंमें जानना चाहिये। १७. आनतसे लेकर नवौवेयक तकके देवोंमें मोहनीयकी उत्कृष्ट प्रदेशभक्ति किसके होती है ? गुणितकाशवाला जो जीव सातवीं पृथिवीसे निकलकर दो तीन बार तिर्यञ्चोंमें भवग्रहण करके मनुष्योंमें उत्पन्न हुआ और जल्दीसे जल्दी योनिसे निकलनेरूप जन्मके द्वारा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001412
Book TitleKasaypahudam Part 06
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1958
Total Pages404
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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