SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 189
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७८ जयधवला सहिदे कसायपाहुडे [ पदेसविहत्ती ५ जीवाणं विसरिसत्ताणुवलंभादो । जदि एवं तो समाणसमए वट्टमाणख विद-गुणिदकम्मंसियाणं अपुव्वगुणसेढिगोबुच्छाओ णियमेण सरिसाओ किण्ण होंति ९ ण, समयं पडि अपुव्वपरिणामाणं असंखेजलोगपमाणाण मुवलंभादो । खविद-गुणिद कम्मं सियाणं समाणापुव्वकरणपरिणामाणं पुण गुणसेढिगोवृच्छाओ सरिसाओ चेवः पदेसविसरिसत्तस्स कारणपरिणामाणं विसरिसत्ताभावादो । जदि वि सरिस अपुव्वकरणपरिणामा विसरिसगुणसेढिणिसेयस्स कारणं तो सव्वापुव्वकरण परिणामेहि अपुव्व - अपुव्वेण चैव गुणसेढिपदेसविण्णासेण होदव्वमिदि १ ण, सव्वापुव्वकरणपरिणामेहि अपुव्वा चैव गुणसेढिपदेसविण्णासो होदि ति नियमाभावादो । किं तु अंतोमुहुत्तमेत्तसगद्धासमएस एगेगसमयं पडि जहण्णपरिणामहाण पहुडि छहि वड्डीहि गदअसंखेज लोगमेत्तपरिणामहासु पढमपरिणामादो तप्पाओग्गासंखेज लोगमे तपरिणामट्ठाणेस गदेसु एगो अपुव्यपदेसविण्णास णिमित्तपरिणामो होदि । हेहिमावसेसपरिणामा 'समाणगुणसेढिपदेसविष्णासे णिमित्तं । एवमेदेण कमेण पुणो पुणो उच्चिण्णिदूण गहिदासेसपरिणामा एगेगसमयपडिबद्धा असंखे • लोगमेत्ता होंति । ते च अण्गोण्णपदेसविण्णासं पक्खिदूण असंखेज्जभागवडिणिमित्ता । पडिभागो पुण असंखेज्जा लोगा । गुणहाणि - सलागाओ पुण एत्थ असंखेजा । सुतेण विणा एदं कथं गव्वदे ? सुत्ताविरुद्धतेण परिणामों में विसदृशता नहीं पाई जाती । 1 शंका- यदि ऐसा है तो समान समयवर्ती क्षपितकर्माश और गुणितकर्मांश जीवोंकी अपूर्वकरणसम्बन्धी गुणश्रेणिकी गोपुच्छाएँ नियमसे समान क्यों नहीं होतीं ? समाधान — नहीं, क्योंकि प्रतिसमय अपूर्व परिणाम असंख्यात लोकप्रमाणप हैं। हां, जिन क्षपितकर्माश और गुणितकर्माश जीवोंके अपूर्वकरणसम्बन्धी परिणाम समान होते हैं उनकी गुण णिकी गोपुच्छाएँ समान ही होती हैं, क्योंकि प्रदेशों में विसदृशता होनेके कारण परिणाम हैं और वहाँ परिणामों में विसदृशताका अभाव है । शंका- यदि अपूर्वकरण परिणामोंकी विसदृशता गुणश्रेणिके निषेकोंकी विसदृशताका कारण है तो सब अपूर्वकरणपरिणामों के द्वारा गुणश्र ेणिके प्रदेशोंका निक्षेप अपूर्व - अपूर्व ही होना चाहिये ? समाधान — नहीं, क्योंकि सब अपूर्वकरण परिणामोंके द्वारा गुणश्रेणिके प्रदेशोंका निक्षेप अपूर्व ही होता है ऐसा नियम नहीं है । किन्तु अपूर्वकरणके अन्तर्मुहूर्तकाल के समय में से प्रत्येक समय में जघन्य परिणामस्थान से लेकर छ वृद्धियोंसे युक्त असंख्यात लोकप्रमाण परिणामस्थानों में से प्रथम परिणामसे लेकर तत्प्रायोग्य असंख्यात लोकप्रमाण परिणामस्थानोंके जाने पर अपूर्व प्रदेशों के निक्षेपमें निमित्त एक परिणाम होता है । और उससे पूर्वके शेष परिणाम समान गुणश्रेणिकी प्रदेशरचनाके कारण हैं । इस प्रकार इस क्रमसे एक एक समयसम्बन्धी एकत्रित किये गये सब परिणाम असंख्यात लोकप्रमाण हैं और परस्परकी प्रदेश रचनाको देखते हुए वे परिणाम असंख्यात भागवृद्धिमें निमित्त होते हैं । यहाँ प्रतिभागरूप असंख्यातका प्रमाण असंख्यात लोक है । परन्तु गुणहानिशलाकाएँ यहाँ अपंख्यात हैं । १. ता० प्रती 'हिमवसेणपरिणाम' श्राप्रतौ 'हेहिमावसेसपरिणाम इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001412
Book TitleKasaypahudam Part 06
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1958
Total Pages404
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy