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________________ गा० २२] उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए सामित्तं १६७ ॐ अपच्छिमस्स हिदिख डयस्स चरिमसमयजहण्णफद्दयमादि कादूण जाव मिच्छत्तस्स उक्कस्सगं ति एदमेगं फद्दय । १६२. 'अपच्छिमस्स हिदिखंडयस्स चरिमसमए' त्ति णि सो समयणुक्कीरणद्धामेत्तगोवच्छाणं फालीणं च गालणफलो । जहण्णपदणि सो गुणिदकम्मं सियगुणिदखविद-घोलमाणचरिमफालिपडिसेहद्वारेण खविदकम्मंसियचरिमफालिपदेसग्गग्गहणफलो । खविदकम्मंसियस्स अपच्छिमहिदिखंडयचरिमफालिजहण्णदव्वमादि कादूण जाव मिच्छत्तस्स उक्कस्सदव्वं त्ति एदमेगं फद्दयं, अंतराभावादो । एदस्स चरिमफद्दयस्स अंतरपमाणपरूवणा कीरदे । तं जहा--समयूणावलियमेत्तफद्दएसु चरिमफद्दयउक्कस्सदव्वादो आवलियमेत्तफद्दएसु चरिमफद्दयस्स जहण्णदव्वमसंखेजगुणं, गुणसेढिदव्वादो चरिमहिदिकंडयचरिमफालिदव्वस्स असंखेजगुणत्तादो । कथमसंखेजगुणतं णव्वदे ? पुवकोडिमेत्तकालं कदगुणसेढिदव्वादो चरिमफालिपदेसग्गमसंखेजगुणं । । त्ति सुत्ताविरुद्ध-गुरुवयणादो। असंखेजगुणओकड्डक्कड्डणभागहारमेत्तखंडीकददिवड्डगुणहाणिमेत्तसमयपबद्ध हिंतो देसूणपव्वकोडिमेत्तखंडेसु अवणिदेसु वि अवणिददव्वादो उव्वरिददव्वस्स असंखेजगुणत्तवलंभादो वा । किं च चरिमफालिम्हि पविअणियट्टिस्पर्धक भी उतने ही होते हैं । यहाँ प्रथम स्पर्धक और द्वितीय स्पर्धकके मध्य जैसे पहले अन्तरका कथन किया है उसी प्रकार सर्वत्र घटित कर लेना चाहिये । तथा द्वितीय स्पर्धकका आयाम अनन्तप्रमाण बतलाया है, उसी प्रकार तृतीयादि सब स्पर्धकोंका आयाम जान लेना चाहिये। 83 अन्तिम स्थितिकाण्डकके अन्तिम समयसम्बन्धी जघन्य स्पर्धकसे लेकर मिथ्यात्वके उत्कृष्ट द्रव्य पर्यन्त एक स्पर्धक होता है। १६२. 'अन्तिम स्थितिकाण्डकके अन्तिम समय' इस कथनका प्रयोजन एक समय कम उत्कीरणकाल प्रमाण गोपुच्छाओं और फालियोंका गलन कराना है। जघन्य पदका निर्देश करनेका .योजन गुणितकाशकी गुणित, क्षपित और घोलमान अन्तिम फालीका प्रतिषेध करके क्षपितकर्मा'शकी अन्तिम फालीके प्रदेशोंका ग्रहण कराना है। इस प्रकार क्षपितकर्मा शके अन्तिम स्थितिकाण्डककी अन्तिम फालीके जघन्य द्रव्यसे लेकर मिथ्यात्वके उत्कृष्ट द्रव्य पर्यन्त एक स्पर्धक होता है, क्योंकि इसमें अन्तरका अभाव है। अब इस अन्तिम स्पर्धकके अन्तरके प्रमाणका कथन करते हैं। यथा-एक समय कम आवलीप्रमाण स्पर्धकोंमें जो अन्तिम स्पर्धक है उसके उत्कृष्ट द्रव्यसे आवलीप्रमाण स्पर्धकोंमें जो अन्तिम स्पर्धक है उसका जघन्य द्रव्य असंख्यातगुणा है; क्योंकि गुणश्रोणिके द्रव्यसे स्थितिकाण्डककी अन्तिम फालीका द्रव्य असंख्यातगुणा है। शंका-अन्तिम फालीका द्रव्य असंख्यातगुणा है यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान—एक पूर्वकोटि काल पर्यन्त की गई गुणश्रणिके द्रव्यसे अन्तिम फालीके प्रदेशोंका समूह असंख्यातगुणा है इस सूत्रके अविरुद्ध गुरुवचनसे जाना जाता है। अथवा डेढ़ गुणहानिप्रमाण समयप्रबद्धोंके अपकर्षण-उत्कर्षण भागहारसे असंख्यातगुणे खण्ड करके, उन खण्डोंमें से कुछ कम पूर्वकोटिप्रमाण खण्डोंके घटाने पर भी घटाये हुए द्रव्यसे बाकी बचा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001412
Book TitleKasaypahudam Part 06
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1958
Total Pages404
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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