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________________ गा० २२ ] उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए सामित्तं १६५ १ अणियट्टिगुणसेडिगोच्छादो गुणिदकम्मंसियअणियट्टिगुणसे डिगोवुच्छा सरिसा ति अवणेयव्वा । कुदो सरिसत्तं १ खविद-गुणिदकम्मं सियअणियट्टिपरिणामाणं सरिसत्तादो । णच परिणामेसु समाणेसु संतेसु गुणसे डिपदेसग्गाणं विसरित्तं, अत्तकञ्जत्त प्पसंगादो । खविदकम्मंसियपगदि-विगिदिअपुव्वगुण से डिगो वुच्छाहिंतो दोसु द्विदीसु द्विदाहिंतो गुणिदकम्मं सियस एगहिदीए हिदउकस्सपगदि - विगिदि - अपुव्वगुणसे ढिगोबुच्छाओ असंखेजगुणाओ त्ति तासु तत्थ अवणिदासु असंखेजा भागा चेति । ते च खविदकम्मं सियम्मि उव्वरिदअणियट्टिगुण सेटिगोवुच्छाए असंखेजदिभागमेत्ता ति तेसु तत्थ सोहिदेसु फद्दयंतरं होदि । सव्वअपुव्वगुणसेढिगोवच्छाहिंतो जेण जहणिया वि अणियट्टि गुणसे ढिगोवु च्छा असंखे० गुणा तेण एसो वि विसेसो अणियट्टिस्स दुरिमगुणसेटिगोच्छादो वि असंखेजगुणहीणो त्ति दव्वं । तदो दोसु हिदीस विदियं फद्दयं होदि ति सिद्ध । पुणो एदासु अहसु गोवच्छासु अणियट्टिगोवुच्छाओ मोत्तूण सेस गोबुच्छाओ परमाणुत्तरकमेण वढावेदब्बाओ जाव जहण्णादो असंखेजगुणत्तं पत्ताओ त्ति । कथं परमाणुत्तरखड्डी ? ण, पयडिगोवुच्छाए पदेसुत्तरवहिं पडि विरोहा समाधान —— युक्ति से जाना । उसका खुलासा इस प्रकार है- क्षपितकर्मा शके अनिवृत्तिकरणसम्बन्धी गुणश्र ेणिकी अन्तिम गोपुच्छासे गुणितकर्मा शके अनिवृत्तिकरणसम्बन्धी गुणश्रेणिकी गोपुच्छा समान है, इसलिए उसे अलग कर देना चाहिए । शंका —क्यों समान है ? समाधान — क्योंकि क्षपितकर्माश और गुणितकर्मा शके अनिवृत्तिकरणरूप परिणाम समान होते हैं और परिणामोंके समान होते हुए गुणश्रेणिके प्रदेशसंचय में असमानता हो नहीं सकती । यदि हो तो प्रदेशसंचय परिणामका कार्य नहीं ठहरेगा । क्षपितकर्मा की दो स्थितियोंमें स्थित प्रकृतिगोपुच्छा, विकृतिगोपुच्छा और अपूर्वकरणसम्बन्धी गुणश्र ेणिकी गोपुच्छाओंकी अपेक्षा गुणितकर्मा शकी एक स्थितिमें स्थित उत्कृष्ट प्रकृतिगोपुच्छा, विकृतिगोपुच्छा और अपूर्वकरणसम्बन्धी गुणश्र ेणिकी गोपुच्छा असंख्यातगुणी हैं, इसलिए उनको इनमें से घटाने पर असंख्यात बहुभाग बाको बचते हैं और वे असंख्यात बहुभाग क्षपितकर्मा शकी बाकी बची अनिवृत्तिकरणकी गुणश्र ेणि गोपुच्छा के असंख्यातवें भागमात्र हैं, इसलिए उनको उसमेंसे घटाने पर दोनों स्पर्धकों का अन्तर प्राप्त होता है । यतः सब अपूर्वकरणसम्बन्धी गुणश्रेणिकी गोपुच्छाओंसे जघन्य भी अनिवृत्तिकरणकी गुणश्र ेणि गोपुच्छा असंख्यातगुणी है अतः यह विशेष भी अनिवृत्तिकरणकी गुणश्रेणिसम्बन्धी द्विचरिम गोपुच्छासे भी असंख्यातगुणा हीन है ऐसा जानना चाहिए । अतः दो स्थितियोंमें दूसरा स्पर्धक होता है यह सिद्ध हुआ । इसके बाद इन आठ गोपुच्छाओं में से अनिवृत्तिकरणसम्बन्धी गोपुच्छाओंको छोड़कर शेष छह गोपुच्छाओंको एक एक परमाणु के क्रमसे तब तक बढ़ाना चाहिए जब तक ये जघन्यसे असंख्यातगुणी प्राप्त हों । शंका- एक एक परमाणु के क्रमसे वृद्धि कैसे होगी ? १. ता० प्रा० प्रत्योः 'गोवुच्छाहिं दोसु' इति पाठः । २. आ० प्रतौ' जहणियादिअणियहि-' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001412
Book TitleKasaypahudam Part 06
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1958
Total Pages404
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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