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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ मोहणीयभागो विसेसाहिओ। वेयणीयभागो विसेसाहिओ । जहा बंधमस्सिदूण अण्णं कम्माणं पदेसभागाभागपरूवणा कदा तहा संतमस्सिदूण वि कायव्वा, विसेसाभावादो। णवरि अट्टण्हं कम्माणं सव्वदव्वस्स असंखे०भागो आउअदव्वं । णाणावरण-दसणावरणमोह-णाम-गोदंतरायाणं दव्वं पादेक सव्वदव्वस्स सत्तमभागो देसूणो। वेयणोयस्स सत्तमभागो सादिरेयो । एवं चदुसु वि गदीसु बंध-संते' अस्सिदूण पदेसभागाभागपरूवणा अट्ठण्हं पि कम्माणं कायव्वा । एवं णेदव्वं जाव अणाहारि ति । कर्मके भागसे विशेष अधिक हैं। मोहनीयकर्मका भाग उक्त कर्मों के भागसे विशेष अधिक है और वेदनीयकर्मका भाग मोहनीयकर्मके भागसे विशेष अधिक है। जैसे बंधको लेकर आठों कर्मों के प्रदेशोंके भागाभागका कथन किया है वैसे ही सत्ताकी अपेक्षासे भी करना चाहिये, दोनोंमें कोई अन्तर नहीं है । इतनी विशेषता है कि आठों कर्मोका जो सब द्रव्य है उसके असंख्यातवें भागप्रमाण आयुकर्मका द्रव्य है। ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय, नाम, गोत्र और अन्तराय कर्मों में से प्रत्येक का द्रव्य सर्व द्रव्यके कुछ कम सातवें भागप्रमाण है और वेदनीयकर्मका द्रव्य कुछ अधिक सातवें भागप्रमाण है। इस प्रकार चारों ही गतियोंमें बंध और सत्ताकी अपेक्षा आठों कर्मों के प्रदेशोंके भागाभागका कथन करना चाहिये। इस प्रकार अनाहारी पर्यन्त ले जाना चाहिये । विशेषार्थ-जीव प्रतिसमय एक समयप्रबद्धका बंध करता है। यदि उत्कृष्ट योग आदि उत्कृष्ट प्रदेशबन्धकी सामग्री होती है तो उत्कृष्ट समयप्रबद्ध का बंध करता है अन्यथा अनुत ष्ट समयप्रबद्ध का बंध करता है। इसी प्रकार जघन्य और अजघन्य समयप्रबद्धके बन्धके विषयमें भी जानना चाहिये। बन्ध होते ही वह समयप्रबद्ध आठ भागोंमें विभाजित हो जाता है। उसक विभाजित होनेका जो क्रम मूलमें बतलाया है उसे अंकसंदृष्टिके रूपमें इस प्रकार समझना चाहिए-कल्पना कीजिये कि समयप्रबद्धके परमाणुओंका परिमाण ६५५३६ है और आवलिके असंख्यातवें भागका प्रमाण ४ है। अतः ६५५३६ में ४ से भाग देने पर लब्ध १६३८४ आता है। इस एक भागको जुदा रखकर बहुभाग ६५५३६–१६३८४४९१५२ के आठ समान भाग करने पर प्रत्येक भागका प्रमाण ६१४४ होता है। इसमेंसे प्रत्येक कर्मको एक एक भाग दे दो। फिर आवलिके असंख्यातवें भाग ४ का विरलन करके ११११ और शेष बचे एक भाग १६३८४ के चार समान भाग करके प्रत्येक एक पर दो। आजकलकी रीतिके अनुसार इसी बातको कहना होगा कि ४ का भाग १६३८४ में दो और लब्ध एक भाग ४०९६ को जुदा रखकर शेष बहुभाग १६३८४-४०९६%१२२८८ वेदनीयको दो। जुदे रखे एक भाग ४७९६ में फिर ४ से भाग दो। लब्ध एक भाग १०२४ को जुदा रखकर शेष बहुभाग ४०९६-१०२४%३०७२ मोहनीयको दो। शेष बचे एक भाग १०२४ में फिर ४ से भाग दो। लब्ध एक भाग २५६ को जुदा रखकर शेष बहुभाग १०२४-२५६=७६८ के तीन समान भाग करके ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तरायको दो। शेष एक भाग २५६ में पुनः ४ का भाग देकर लब्ध एक भाग ६४ को जुदा रखो और शेष बहुभाग २५६ - ६४ = १९२ के दो समान भाग करके नाम और गोत्रको एक-एक भाग दो। बाकी बचा एक भाग ६४ आयुकर्मको दो। ऐसा करनेसे प्रत्येक कर्मको इस प्रकार द्रव्य मिला १. ता०प्रतौ 'बंधे संते' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001412
Book TitleKasaypahudam Part 06
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1958
Total Pages404
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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