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________________ ११९ गा० २२] उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए सामित्तं उववण्णो तस्स पढमसमयउववण्णस्स उक्क० पदेसवि० । एवं मणुसअपजत्ताणं ।। १२७. मणुस्सेसु मिच्छत्त-बारसक०-छण्णोक० पंचिंदियतिरिक्खअपजत्तभंगो। णवरि मणुस्सेतु उववण्णो त्ति वत्तव्वं । सम्मत्त-सम्मामि०-चदुसंजल-पुरिसवेद० ओघं । इत्थि०-णवंस० उक्क० पदेस० कस्स ? जो पूरिदकम्मंसिओ मणुस्सेसु उववण्णो तस्स पढमसमयउववण्णस्स उक्क० पदेससंतकम्मं । एवं मणुसपजत्तमणुसिणीणं । ६ १२८. देवेसु मिच्छ०-सोलसक०-छण्णोक० उक्क० पदेसवि० कस्स ? जो गुणिद. कम्मंसिओ अधो सत्तमादो पुढवीदो उव्वट्टिदसमाणो संखेजाणि तिरियभवग्गहणाणि अणुपालेदृण देवेसु उववण्णो तस्स पढमसमय उववण्णस्स उक्क० पदेसवि० । सम्मामि० उक्क० पदेसवि० कस्स ? सो चेव जीवो सम्मत्तं पडिवण्णो अंतोमुहुत्तं सव्वुक्कस्सियाए पूरणद्धाए पूरेदण तदो तिण्हमेक्कदरस्स कम्मस्स उदए पडिहिदि ति तस्स उक्क० पदेसवि० । सम्मत्त० णेरइयभंगो। इत्थि० उक्क० पदेसवि० कस्स ? जो पूरिदकम्मंसिओ देवेसु उववण्णो तस्स पढमसमयउववण्णस्स उक० पदेसवि० । पुरिसवेदवि० ओघं। णवरि पलिदोवमद्विदिएसु देवेसु उप्पजिदूण पुरिसवेदमावूरिदचरिमउसके उत्पन्न होनेके प्रथमसमयमें उत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति होती है। इसी प्रकार मनुष्य अपर्याप्तकोंमें जानना चाहिये। ६१२७. सामान्य मनुष्योंमें मिथ्यात्व, बारह कषाय और छह नोकषायोंको उत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्तकोंके समान होती है । इतना विशेष है कि पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्तके स्थानमें 'मनुष्योंमें उत्पन्न हुआ' ऐसा कहना चाहिये। सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, चार संज्वलन कषाय और पुरुषवेदकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति ओघकी तरह जानना चाहिये। स्त्रीवेद और नपुंसकवेदकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति किसके होती है ? जो स्त्रीवेद और नपुंसकवेदका उत्कृष्ट संचय करके मनुष्योमें उत्पन्न हुआ उसके उत्पन्न होनेके प्रथम समयमें उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म होता है । इसी प्रकार मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यिनियोंके जानना चाहिये। ६१२८. देवोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और छह नोकषायोंकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति किसके होती है ? जो गुणितकर्मा शवाला जीव नीचे सातवें नरकसे निकल कर और तिर्यश्चके संख्यात भव धारण करके देवोंमें उत्पन्न हुआ, उसके उत्पन्न होनेके प्रथम समयमें उत्कल प्रदेशविभक्ति होती है। सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति किसके होती है ? वही देवोमें उत्पन्न हुआ जीव जब सम्यक्त्वको प्राप्त करके अन्तर्मुहूर्त पर्यन्त सबसे उत्कृष्ट पूरण कालके द्वारा सम्यग्मिथ्यात्वको प्रदेशोंसे पूर देता है और उसके बाद दर्शनमोहकी तीनों प्रकृतियोंमेंसे किसी एक प्रकृतिके उदयको प्राप्त होगा उसके उत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति होती है। सम्यक्त्व प्रकृतिका भंग नारकियोंकी तरह जानना चाहिये। स्त्रीवेदकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति किसके होती है ? जो स्त्रीवेदको पूर कर देवोंमें उत्पन्न हुआ उसके उत्पन्न होनेके प्रथम समय में उत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति होती है। पुरुषवेदकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति ओघकी तरह जानना चाहिए। इतना विशेष है कि पल्यकी स्थितिवाले देवोंमें उत्पन्न होकर पुरुषवेदका उत्कृष्ट संचय करने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001412
Book TitleKasaypahudam Part 06
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1958
Total Pages404
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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