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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ अणुभागविहत्ती ४ लोगे । एवं कायजोगि०--ओरालिय०--णqस०--चत्तारिकसाय-अचक्खु०--भवसि०-- आहारि ति।
$ १०१. आदेसेण गैरइएसु मोह० जहण्णाजहएणाणुभाग० केव० खेत्ते ? लोग० असंखे०भागे । एवं सब्वणेरइय-सव्वपंचिंदियतिरिक्ख-सव्वमणुस-सव्वदेव-सव्वविगलिंदिय-सव्वपंचिंदिय-बादरपुढविपज्ज०--बादरआउपज्ज०--बादरतेउपज्ज०-बादर-- वणप्फदिपत्तेयसरीरपज्ज --सव्वतसकाय०--पंचमण. --पंचवचि०-वेउव्विय०-वेउव्वियमिस्स-आहार-आहारमिस्स०-इत्थि०-पुरिस०-अवगद-अकसा०-विहंग०-आभिणि०सुद०-ओहि०-मणपज्ज०-संजद-सामाइय-छेदो०-परिहार०--सुहुमसांपराय-जहाक्खाद०संजदासंजद-चक्खु०-ओहिदंस०-तेउ०-पम्म०-सुक्क०--सम्मादिहि-वेदग०-खइय०-उवसम०-सासण०-सम्मामि०-सरिण ति ।
१०२. तिरिक्खगईए तिरिक्खेसु मोह० जहण्णाजहण्णाणुभागविहत्तिया केवडि खेत्ते ? सव्वलोगे । एवमेइंदिय-बादरेइंदिय-बादरेइंदियपज्जत्तापज्जत्त-सुहुमेइंदिय-हुमेइदियपजत्तापज्जत्त--पुढवि०-- बादरपुढवि०-- बादरपुढविअपज्ज०--सुहुमपुढवि०--सुहुमपुढविपज्जतापज्जत्त-आउ०--बादरआउ०-बादराउअपज्ज०--मुहुमआउ०--सुहुमाउतवें भागप्रमाण क्षेत्र है। अजघन्य अनुभागविभक्तिवाले जीवोंका सब लोक क्षेत्र है। इसी प्रकार काययोगी, औदारिककाययोगी, नपुंसकवेदी, क्रोधी, मानी, मायावी, लोभी, अचक्षुदर्शनवाले, भव्य और आहारकोंमें जानना चाहिए।
१०१. श्रादेशकी अपेक्षा नारकियोंमे मोहनीयकर्मकी जघन्य और अजघन्य अनुभागविभक्तिवाले जीवोंका कितना क्षेत्र है ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र है। इसी प्रकार सब नारकी, सब पञ्चन्द्रियतिर्यञ्च, सब मनुष्य, सब देव, सब विकलेन्द्रिय, सब पञ्च न्द्रिय, बादर पृथिवीकायिक पर्याप्त, बादर अप्कायिक पर्याप्त, बादर तैजस्कायिक पर्याप्त, बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर पर्याप्त, सब त्रसकायिक, पाँचों मनोयोगी, पाँचों वचनयोगी, वैक्रियिककाययोगी, वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, आहारककाययोगी, आहारकमिश्रकाययोगी, स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी, अपगतवेदी, अकषायी, विभंगज्ञानी, आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, मनः पर्ययज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापनासंयत, परिहारविशुद्धिसंयत, सूक्ष्मसाम्परायसंयत, यथाख्यातसंयत, संयतासंयत, चक्षुदर्शनवाले, अवधिदर्शनवाले, तेजोलेश्यावाले, पद्मलेश्यावाले, शुक्ललेश्यावाले, सम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि, उपशमसम्यग्दृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यमिथ्यादृष्टि और संज्ञी जीवोंमे जानना चाहिए।
१०२. तिर्यञ्चगतिमे तिर्यञ्चोंमें मोहनीयकर्मकी जघन्य और अजघन्य अनुभागविभक्तिवाले जीवोंका कितना क्षेत्र है ? सब लोक क्षेत्र है। इसी प्रकार एकेन्द्रिय, बादर एकेन्द्रिय, बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त, बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त, सूक्ष्म एकेन्द्रिय, सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त, सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्त, पृथिवीकायिक, बादर पृथिवीकायिक, बादर पृथिवीकायिक अपर्याप्त, सूक्ष्म पृथिवीकायिक, सूक्ष्म पृथिवीकायिक पर्याप्त, सूक्ष्म पृथिवीकायिक अपर्याप्त, अप्कायिक, बादर अकायिक, बादर अकायिक अपर्याप्त, सूक्ष्म अप्कायिक, सूक्ष्म अकायिक पर्याप्त, सूक्ष्म अप्का
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