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________________ ی بی رحیمیج بے بی بی سی سی نے بی بی ج ३६४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ अणुभागविहत्ती ४ भत्थरासी अभवसिदिएहि अणंतगुणो सिद्धाणंतिमभागो। अजहण्णअणुक्कस्सियासु वग्गणासु कम्मपदेसा अणंतगुणा ५७७६ । को गुणगारो ? अभवसिद्धिएहि अणंतगुणो सिद्धाणंतिमभागो किंचूणदिवडगुणहाणिमेतो वा । अजहणियासु वग्गणासु कम्मपदेसा विसेसाहिया ५७८८ । केत्तियमेतेण ? उक्कस्सवग्गणकम्मपदेसमेत्तेण । अणुक्कस्सियासु वग्गणासु कम्मपदेसा विसेसाहिया ६२६१ । के. मेत्तेण ? उक्कस्सवग्गणकम्मपदेसूणजहण्णवग्गणकम्मपदेसमेत्तेण । सव्वासु वग्गणासु कम्मपदेसा विसेसाहिया ६३०० । के० मेत्तेण ? उक्कस्सवग्गणकम्मपदेसमेत्तेण । एवमेसा परूवणा जहण्णाणुभागस्स कदा । ६०६. जदि एदस्स हाणस्स चरिमफद्दयचरिमवग्गणाए एगो वग्गो चेव जहण्णाणुभागहाणं होदि तो तं मोत्तण अवसेसवग्ग-वग्गणा-फद्दयपदेसाणं परूवणा असंबद्धिया, जहण्णहाणपरूवणाए अजहण्णहाणपरूवणाणुववत्तीदो त्ति ? ण, एवं अन्योन्याभ्यस्तराशि गुणकारका प्रमाण है जो अभव्यराशिसे अनन्तगुणा और सिद्धराशिके अनन्तवें भागप्रमाण है । अजघन्य अनुत्कृष्ट वर्गणाओंमें कर्मप्रदेश अनन्तगुणे हैं ५७७९ । गुणकार कितना है ? अभव्यराशिसे अनन्तगुणा और सिद्धराशिके अनन्तवें भागप्रमाण कुछ कम डेढ़ गुणहानि मात्र गुणकारका प्रमाण है। अजघन्य वर्गणाओंमें कर्मप्रदेश विशेष अधिक है ५७२८ । कितने अधिक हैं ? उत्कृष्ट वर्गणाके जितने कर्मप्रदेश हैं उतने अधिक हैं। अनुत्कृष्ट वर्गणाओं में कर्मप्रदेश विशेष अधिक हैं ६२९१ । कितने अधिक हैं ? उत्कृष्ट वर्गणाके कर्मप्रदेशोंसे हीन जघन्य वर्गणाके कर्मप्रदेशप्रमाण अधिक हैं । सब वर्गणाओंमें कर्मप्रदेश विशेष अधिक हैं ६३०० । कितने अधिक हैं ? उत्कृष्ट वर्गणाके कर्मप्रदेशोंका जितना प्रमाण है उतने अधिक हैं। विशेषार्थ-पहले विशेषार्थमें सब वर्गणाओंके कर्मपरमाणुओंका प्रमाण अङ्कसंदृष्टिसे ६३०० बतला आये हैं तथा प्रत्येक वर्गणामें उनका बटवारा करके प्रत्येक वर्गणाके कर्मपरमाणुओंका प्रमाण भी बतला आये हैं । उस बटवारेके अनुसार सबसे प्रथम वर्गणामें, जो कि जघन्य वर्गणा है, ५१२ कर्मपरमाणु हैं और सबसे अन्तिम वर्गणामें, जो कि उत्कृष्ट वर्गणा है, ९कर्मपरमाणु हैं अत: जघन्य और उत्कृष्टके सिवाय शेष वर्गणाओंमें कितने परमाणु हैं ? इस प्रश्नका सरल उत्तर यह है कि जघन्य वर्गणा और उत्कृष्ट वर्गणाके परमाणुओंको सब वर्गणाओंके परमाणुओंमेंसे घटा देना चाहिए। यथा--५१२+९=५२१ । ६३००-५२१-५७७९ इतने शेष वर्गणाओंके कर्मपरमाणुओंका प्रमाण आता है । इसी तरह सब वर्गणाओंके परमाणुओंमेंसे जघन्य वर्गण के परमाणुओंको कम करनेसे ६३००-५१२ = ५७८८ अजघन्य वर्गणाओंके परमाणुओंका प्रमाण आता है। तथा सब वर्गणाओंके परमाणुओंमेंसे उत्कृष्ट वर्गणाके परमाणुओंको घटा देनेसे ६३००-९ = ६२९१ अनु कृष्ट वर्गणाओंके कर्मपरमाणुओंका प्रमाण आता है । इस प्रकार उत्कृष्ट, जघन्य, अजघन्य-अनुत्कृष्ट, अजघन्य और अनुत्कृष्ट वर्गणाओंके कर्मपरमाणुओंकी संख्या जान लेने पर उनमें अल्पबहुत्व लगा लेना चाहिए । इस प्रकार जघन्य अनुभागकी यह प्ररूपणा हुई। ६६०६. शंका-यदि इस अनुभागस्थानके अन्तिम स्पर्धककी अन्तिम वर्गणाका एक वर्ग ही जघन्य अनुभागस्थान है तो उसके सिवा शेष वर्गों, वर्गणाओं और स्पर्धकोंके प्रदेशोंका कथन करना असंगत है, क्योंकि जघन्य स्थानकी प्ररूपणामें अजघन्य स्थानकी प्ररूपणा नहीं बन सकती। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001411
Book TitleKasaypahudam Part 05
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages438
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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