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________________ जयधवलास हिदे कसायपाहुडे [ अणुभागविहत्ती४ $ ६०२. णवमवग्गणपमाणेण सव्वदव्वे अवहिरिज्जमाणे केवचिरेण काले अवहिरिज्जदि ९ सादिरेयरूवाहियदिवडूगुणहाणिहाणंतरेण कालेन वहिरिज्जदि । कारणं चिंतिय वत्तव्वं । ९ ६०३. संपति का वग्गणा दोगुणहाणिपमाणेण अवहिरिज्जदि ? पढमगुणहाणीए अद्धं गंतून जा हिंदा सा अवहिरिज्जदि । पढमवग्गणविक्खंभं चत्तारि फालीओ काऊण तत्थेगफालिं घेतूण गुणहाणिअद्धपमाणेण आयामेण खंडिय तीसु चदुब्भागखंडेसु समयाविरोहेण ढोइदे चदुब्भागूणपढमवग्गणविक्खंभवेगुणहाणि आयद खेत्तप्पत्तिदंसणादो। एतो उवरिमखेत्तविण्णासो तेरासियकमो च जाणिय वत्तव्वो जाव जहएणडारण चरिमवग्गणे त्ति, विसेसाभावादो । ३६२ एवमवहारो गदो | वर्गणा प्रमाणसे करने पर वह पाँच अधिक डेढ़ गुरणहानिसे कुछ अधिक कालके द्वारा अपहृत होता है यह कहा है । $ ६०२. नौवीं वर्गरणा के प्रमाण से समस्त द्रव्य अपहृत होने पर वह कितने कालके द्वारा अपहृत होता है ? कुछ विशेष छह रूप अधिक डेड़ गुणहानिप्रमारण कालके द्वारा अपहृत होता है । कारण जान कर कहना चाहिए । विशेषार्थ - नौवीं वर्गणा ( ४८० = १२०x४ ) से समस्त द्रव्य ४९१५२ को अपहृत करने छह रूप अधिक डेढ़ गुणहानि ( ९६ + ६ = १०२ ) से कुछ अधिक काल प्राप्त होता है = १०२- I सातवाँ अङ्क पूरा नहीं होता, क्योंकि चौबीस वर्गणाविशेष कम डेढ़ ४९१५२ ४८० ४८ १२० गुणहानिप्रमाण वर्गणाविशेषों की कमी है ( ७x४८० : ९६x८ × ४ = ७२x४ = ९६x४ - २४ × ४) । इसीप्रकार दसवीं, ग्यारहवीं, बारहवीं आदि वर्गणाओं का अपहार काल लाना चाहिये । $ ६०३. अब कौनसी वर्गणा दो गुणहानिप्रमाण काल से सब द्रव्य के अपहृत होने पर आती हैं ? प्रथम गुणहानिका अर्ध भाग स्थान जाकर जो वर्गणा स्थित है वह सब द्रव्यके अपहृत होनेपर आती है । प्रथम वर्गणाप्रमाण विस्तारकी चार फालियां करके, उनमें से एक फाली ग्रहण कर गुणहानिके अर्धभागप्रमाण आयाम से उसके खण्ड कर, उस चतुर्थ भागके तीन खण्डों को नियमानुसार मिला देनेपर चौथा भाग कम प्रथम वर्गणाप्रमाण विस्तारवाला और दो हानियामवाला क्षेत्र उत्पन्न होता हुआ देखा जाता है। इससे आगेका क्षेत्रविन्यास और त्रैराशिक क्रम जघन्य स्थानकी अन्तिम वर्गणा के प्राप्त होने तक जानकर कहना चाहिये, क्योंकि कोई विशेषता नहीं है । विशेषार्थ - गुणहानि (६४) का आधा (३२) स्थान जाकर जो वर्गणा ( ३८४ ) प्राप्त होती है। उससे समस्त द्रव्य ( ४६१५२ ) को अपहृत करने पर दो गुणहानि (६४x२= १२८) ४९१५२ काल प्राप्त होता है. = १२८ | प्रथम वर्गणाप्रमाण ( ५१२) चौड़े और डेढ़ गुणहानि ३८४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001411
Book TitleKasaypahudam Part 05
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages438
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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