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गा० २२] अणुभागविहत्तीए हाणपरूवणा
३३५ सुहुमणिगोदजहण्णट्ठाणस्सुवरि अणंतभागब्भहियं वड्डिदूण बंधिय पुणो बंधावलियादीदम्हि तम्हि संकामिदे जहणिया वढि ति । ण च जहण्णहाणे संतकम्महाणे संते अणंतगुणवडिं मोत्तूण अण्णा वड्डी संभवदि, अह कुव्वंकाणं विच्चाले समुप्पण्णस्स सेसवडीणं संभवविरोहादो। ण च बंधेण विणा उक्कड्डणाए अणुभागहाणस्स वड्डी अत्थि, सरिसधणियपरमाणुवुड्डीए अणुभागहाणस्स वुड्डीए अभावादो। उक्कड्डिदे संते पुचिल्लअविभागपडिच्छेदसंखादो संपहियअविभागपडिच्छेदसंखाए वड्डी किमत्थि आहो पत्थि ? जदि अत्थि, अणुभागहाणबुड्डीए होदव्वं जोगहाणाणं व । ण च अविभागपडिच्छेदसमूहं मोत्तूण अण्णमणुभागहाणमत्थि, अणुवलंभादो । अह णत्थि, बंधेण फदयवडीए संतीए वि अणुभागहाणवुडीए ण होदव्वं । तत्थ वि उक्कड्डणाए इव अविभागपडिच्छेदवढेि मोत्तूण अण्णवड्डीए अणुवलंभादो। बंधे पदेसाणं वुड्डी अत्थि त्ति णाणुभागवुड्डी तत्थ वोत्तसकिज्जइ, अणुभागपदेसाणमेगत्ताभावादो। ण च अण्णस्स बहुत्तेण अण्णस्स वुड्डी होदि, विरोहादो। बंधे फद्दयवुड्डी अत्थि ति ण हाणवुड्डी वोत्तु सकिज्जइ, अविभागपडिच्छेदवदिरित्तफद्दयाणमणुवलंभादो। तम्हा बंधेणेव उक्कड्डणाए वि अणुभागहाणवुड्डीए होदव्वमिदि ? एत्थ परिहारो वुच्चदे। तं जहा—ण ताव पढमपक्खुत्तजाना। वह इस प्रकार है-- सूक्ष्म निगोदिया जीवके जघन्य स्थानके ऊपर अनन्तभागवृद्धिको लिए हुए बंध करने पर पुन: उसका बन्धावलीसे बाह्य निषेकोंमें बन्धावलीको बिताकर संक्रमण करने पर जघन्य वृद्धि होती है। यदि सूक्ष्म जीवका जघन्य अनुभागस्थान बन्धस्थानके समान न होकर, सत्कर्मस्थान रूप होता तो उसमें अनन्तगुणवृद्धिको छोड़कर दूसरी वृद्धि नहीं होती, क्योंकि जो स्थान अष्टांक और उर्वकके बीचमें उत्पन्न हुआ है उसमें शेष वृद्धियोंके होनेमें विरोध आता है। तथा बंधके विना उत्कर्षणके द्वारा अनुभागस्थानकी वृद्धि होती है, यह कहना भी ठीक नहीं है, क्योंकि समान धनवाले परमाणुओंकी वृद्धि होने पर अनुभागस्थानकी वृद्धिका अभाव है।
शंका-उत्कर्षणके होने पर पहलेके अविभागी प्रतिच्छेदोंकी संख्यासे वर्तमान अविभागी प्रतिच्छेदोंकी संख्या वृद्धि होती है या नहीं ? यदि होती है तो योगस्थानकी तरह अनुभागस्थानकी वृद्धि भी होनी चाहिये। और अविभागी प्रतिच्छेदों के समूहको छोड़कर अनुभागस्थान कोई अन्य वस्तु नहीं है, क्योंकि ऐसा पाया नहीं जाता है। यदि उत्कर्षणके होने पर पहलेके अविभागी प्रतिच्छेदोंकी संख्यासे वर्तमान अविभागी प्रतिच्छेदोंकी संख्यामें वृद्धि नहीं होती है तो बन्धके द्वारा स्पर्धकोंकी वृद्धिके होने पर भी अनुभागस्थानकी वृद्धि नहीं होनी चाहिये, क्योंकि उत्कर्षणकी तरह उसमें भी अविभागी प्रतिच्छेदोंकी वृद्धिको छोड़कर अन्य वृद्धि नहीं पाई जाती है। बंधके होने पर प्रदेशोंकी वृद्धि होती है इसलिये अनुभागकी भी वृद्धि होती है ऐसा नहीं कह सकते हैं, क्योंकि अनुभाग और प्रदेश एक नहीं हैं। और अन्यकी वृद्धि होने पर अन्यकी वृद्धि होती नहीं है, क्योंकि ऐसा माननेमें विरोध आता है। तथा बन्धके होने पर स्पर्धकोंकी वृद्धि होती है इसलिये स्थानकी भी वृद्धि होती है ऐसा भी नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि अविभागी प्रतिच्छेदोंसे अतिरिक्त स्पर्धक नहीं पाये जाते हैं। अतः बंधकी तरह उत्कर्षणके द्वारा भी अनुभागस्थानकी वृद्धि होनी चाहिये ।
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