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जयधवला सहिदे कसायपाहुडे
[ अणुभागविहत्ती ४
सम्मामि० अवट्ठि ० - अवत्तव्व० लोग० असंखे ० भागो चोद्दस० देसूणा । सम्मत्त ० अनंतगुणहाणि० खेत्तं । उवरि अट्ठावीसंपयडीणं सव्वपदवि० खेत्तं । एवं जाणिदूण दव्वं जाव अणाहारिति ।
९ ५५८. णाणाजीवेहि कालाणु० दुविहो णिद्द सो- ओघेण आदेसेण य । घेण छब्बीसंपडणं तेरसपदवि० सम्म ०- सम्मामि० अवद्वि० सव्वद्धा । छण्हमवत्त० जह० एगस०, उक्क० आवलि० असंखे ० भागो । सम्म० अनंतगुणहाणि० ज० एस ०, उक्क० तोमु० । सम्मामि० श्रणंतगुणहाणि० ज० एस ०, उक्क० संखेज्जा समया । एवं तिरिक्खोघं । णवरि सम्मामि० अनंतगुणहाणी णत्थि ।
अवक्तव्य विभक्तिवालो ने लोकके असंख्यातवें भाग और चौदह राजूमें से कुछ कम छह राजू प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । सम्यक्त्वकी अनन्तगुणहानिवालोंका स्पर्शन क्षेत्र के समान है । अच्युत स्वर्गसे ऊपर अट्ठाईस प्रकृतियों की सर्व पद विभक्तिवालों का स्पर्शन क्षेत्रके समान है । इस प्रकार जानकर अनाहारी पर्यन्त लेजाना चाहिये ।
विशेषार्थ - अनन्तानुबन्धी, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व की अवक्तव्य विभक्ति वालो का जो कुछ कम आठ बटे चौदह राजू स्पर्शन कहा है सो अतीत काल की अपेक्षा विहारवत्स्वस्थान आदि संभव पदो के द्वारा जानना चाहिए। आदेश से नारकियो में छब्बीस प्रकृतियो की तेरह पदविभक्तिवालों का स्पर्शन अतीत कालकी अपेक्षा मारणान्तिक और उपपाद पदके द्वारा कुछ कम छह बटे चौदह राजू होता है । सामान्य तिर्यश्वो में सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वक अवस्थित विभक्तिवालो ने मारणान्तिक और उपपाद पदके द्वारा तीनों कालो में सर्वलोकका स्पर्शन किया है और विहारवत्स्वस्थान आदि संभव पदो के द्वारा लोकका असंख्यातवाँ भाग स्पर्शन किया है। सामान्य देवों में छब्बीस प्रकृतियो की तेरह पद विभक्तिवालो ने और सम्यक्त्व तथा सम्यग्मिथ्यात्वकी अवस्थित विभक्तिवालों ने विहारवत्स्वस्थान, विक्रिया आदि पदों के द्वारा अतीत कालमें कुछ कम आठ बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पशन किया है और मारणान्तिक समुद्घातके द्वारा कुछ कम नौ बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है और वर्तमानकी अपेक्षा लोकके असंख्यातवें भागका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार सौधर्मादिक में जानना चाहिए । विशेष यह है कि मारणान्तिक पदके द्वारा कुछ कम नौ बटे चौदह राजू स्पर्शन ईशान पर्यन्त ही होता है, क्योकि ईशान तकके देव ही एकेन्द्रियों में मारणान्तिक समुद्घात करते हैं, ऊपरके देव नहीं करते । तथा आनतादिक स्वर्गो में मारणान्तिक आदि पदों के द्वारा कुछकम छह बटे चौदह राजू स्पर्शन होता है, क्योंकि चित्रा पृथिवी के ऊपर के तल से इनका मन नहीं होता ।
$ ५५८. नाना जीवोंकी अपेक्षा कालानुगमसे निर्देश दो प्रकारका है - ओघ और आदेश । घसे छब्बीस प्रकृतियोंकी तेरह पद विभक्तियोंका तथा सम्यक्त्व और सम्यग्मिध्यात्वकी अवस्थित विभक्तिका काल सर्वदा है । सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अवक्तव्य विभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवली के असंख्यातवें भाग प्रमाण है । सम्यक्त्वकी अनन्तगुणहानिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है । सम्यग्मिथ्यात्वकी अनन्तगुणहानिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । इसी प्रकार सामान्य तिर्यञ्चोंमें जानना चाहिए। इतना विशेष है कि तिर्यभ्वोंमें सम्यग्मिथ्यात्वकी अनन्तगुणहानि नहीं है ।
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