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________________ १४॥ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [अणुभागविहत्ती ४ ॐ पदुसंजलणाणमणुभागसंतकम्मं सव्वघादी वा देसघादी था एगद्वाणियं वा दुट्ठाणियं वा तिढाणियं वा चउट्ठाणियं वा । २०५. एत्थ जहण्णुकस्सविसेसणमणुभागसंतकम्मस्स काऊण परूवणा किण्ण कदा ? ण, अणुभागसंतस्स विसेसपदुप्पायण तदकरणादो । खवणाए किट्टीकरणादो हेहा सव्वत्थ संसारावत्थाए चदुसंजलणाणुभागसंतकम्म सव्वघादी चेव, संतकम्मचरिमफद्दयचरिमवग्गणाए एगपरमाणुधरिदाविभागपलिच्छेदोणं गहणादो। तेण चदुसंजलणाणुभागसंतकम्मं सव्वघादि त्ति सुत्तवयणं सुसमंजसं । खवगसेढीए किट्टिकरणे णिहिदे मोहणीयमुवरि सव्वत्थ जेण देसघादी तेणं चदुसंजलणाणुभागसंतकम्मं देसघादि ति मुत्तम्मि परूविदं । खवगसेढीए पुव्वापुव्वफदएमु णवकबंधवज्जेसु किट्टिसरूवेण परिणदेस तत्तो प्पहुडि लदासमाणाणुभागसंतकम्म चेव जेणुवलब्भदि तेण एगहाणियमिदि चदुसंजलणसंतकम्मं परूविदं । हेहा अणुभागसंतकम्मघादवसेण एगहाणियं मोत्तूण सेसहाणाणि लब्भंति ति दुढाणियं तिहाणियं चउहाणियं वा त्ति भणिदं । सव्वे 'वा' सहा 'च' सहत्थे दहव्वा । छ इत्थिवेदस्स अणुभागसंतकम्मं सव्वघादी दुहाणियं वा तिढाणियं * चार संज्वलन कषायोंका अनुभागसत्कर्म सर्वघाती और देशघाती तथा एकस्थानिक, द्विस्थानिक, त्रिस्थानिक और चतुःस्थानिक होता है। $२०५. शंका-यहाँ अनुभागसत्कर्मके साथ जघन्य और उत्कृष्ट विशेषण लगाकर कथन क्यों नहीं किया ? समाधान-नहीं,क्योंकि अनुभागसत्कर्मका विशेष बतलानेके लिये उसके साथ जघन्य और उत्कृष्ट विशेषण नहीं लगाये हैं। __क्षपणावस्थामें कृष्टिकरणक्रिया करनेके पूर्व सर्वत्र संसार अवस्थामें चार संज्वलन कषायोंका अनुभागसत्कर्म सर्ववाती ही होता है, क्योंकि यहाँ सत्कर्मके अन्तिम स्पर्भककी अन्तिम वर्गण के एक परमाणु में स्थित अविभागीप्रतिच्छेदोंका ग्रहण किया है। अतः चार संज्वलन कषायोंका अनुभागसत्कर्म सर्वघाती है यह सत्र वचन बिल्कुल ठीक है। तथा क्षपकश्रेणीमें कृष्टिकरणक्रियाके निष्पन्न हो जाने पर आगे सर्वत्र मोहनीयकर्म देशघाती ही होता है, अतः चार संज्वलन कषायोंका अनुभागसत्कर्म देशघाती है ऐसा सूत्र में कहा है। क्षपकश्रेणीमें नवकबंधको छोड़कर शेष पूर्व स्पर्धक और अपूर्व स्पर्धकोंका कृष्टिरूपसे परिणमन हो जाने पर वहाँसे लेकर उनमें लता समान अनभाग सत्कर्म ही पाया जाता है. अतः चार संज्वलन कषायोंक अनुभागसत्कर्मको एकस्थानिक कहा है। तथा इससे पूर्व अनुभागसत्कर्मका घात हो जानेके कारण जो एकस्थानिक अनुभाग होता है उसे छोड़कर शेष स्थान पाये जाते हैं, इसलिये उसे द्विस्थानिक, त्रिस्थानिक और चतुःस्थानिक कहा है। सूत्र में आये हुए सब 'वा' शब्द 'च' शब्दके अर्थमें जानने चाहिये। * स्त्रीवेदका अनुभागसत्कर्म सर्वघाती तथा द्विस्थानिक, त्रिस्थानिक और ३. ता० प्रतौ जेण सव्वधादी तेण इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001411
Book TitleKasaypahudam Part 05
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages438
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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