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________________ १३४ जयधवलासहिदे कसायपाहुड [ अणुभागविहत्ती ४ लोभचरिमाणुभागफद्दयादो मायाए चरिमाणुभागफद्दयं विसेसहीणं । तत्तो कोधचरिमफद्दयं विसेसहीणं । कोधचरिमफद्दयादो माणचरिमफद्दयं विसंसहीणं' । अणंताणुबंधिमाणचरिमफद्दयादो लोभसंजलणचरिमाणुभागफद्दयमणंतगुणहीणं । ततो तस्सेव मायाचरिमफद्दयं विसेसहीणं । तदो तस्सेव कोधचरिमफद्दयं विसेसहीणं । तदो तस्सेव माणचरिमफद्दयं विसेसहीणं । माणसंजलणचरिमफद्दयादो पञ्चक्खाणावरणलोभचरिमफद्दयमणंतगुणहीणं । तदो तस्सेव मायाचरिमफदयं विसेसहीणं, तदो तस्सेव कोधचरिमफद्दयं विसेसहीणं । तदो तस्सेव माणचरिमफदयं विसेसहीणं । पञ्चक्रवाणावरणमाणचरिमफदयादो अपञ्चक्रवावरणलोभचरिमफद्दयमणंतगुणहीणं। तदो तस्सेव मायाचरिफद्दयं विसेसहीणं । तदो तस्सेव कोधचरिमफद्दयं विसेसहीणं तदो तस्सव माणचरिमफदयं विसेसहीणं । अपचक्खाणावरणमाणचरिमफद्दयादो णवू. सयवेदचरिमाणुभागफद्दयमणंतगुणहीणं । अरदिचरिमाणुभागफद्दयमणंतगुणहीणं । सोगचरिमाणुभागफद्द्यमणंतगुणहीणं । भयचरिमाणुभागफद्दयमणंतगुणहीणं। दुगुंछाचरिमाणुभागफद्द्यमणंतगुणहीणं । इत्थिवेदचरिमाणुभागफद्दयमणंतगुणहीणं । पुरिसवेदचरिमाणुभागफद्दयमणंतगुणहीणं । रदीए चरिमाणुभागफद्दयमणंतगुणहीणं । हस्सचरिमाणुभागफद्दमणंतगुणहीणं सम्मामिच्छत्तचरिमाणुभागफयणंतगुणहीणं । सम्मचस्पर्धक अनन्तगुणा हीन है । लोभके अन्तिम अनुभागस्पर्धकसे मायाका अन्तिम अनुभागस्पर्धक विशेषहीन है। उससे क्रोधका अन्तिम स्पर्धक विशेषहीन है। क्रोधके अन्तिम स्पर्धकसे मानका अन्तिम स्पर्धक विशेषहीन है। अनन्तानुबन्धी मानके अन्तिम स्पर्धकसे संज्वलनलोभका अन्तिम स्पर्धक अनन्तगुणाहीन है। उससे उसीकी मायाका अन्तिम स्पर्धक विशेषहीन है। उससे उसीके क्रोधका अन्तिम स्पर्धक विशेषहीन है। उससे उसी मानका अन्तिम स्पर्धक विशेषहीन है। संज्वलनमानके अन्तिम स्पर्धकसे प्रत्याख्यानावरण लोभका अन्तिम स्पर्धक अनन्तगणा हीन है। उससे उसीकी मायाका अन्तिम स्पर्धक विशेषहीन है। उससे उसीके क्रोधका अन्तिम स्पधेक विशेषहीन है। उससे उसीके मानका अन्तिम स्पर्धक विशेषहीन है। प्रत्याख्यानावरण मानके अन्तिम स्पर्धकसे अप्रत्याख्यानावरण लोभका अन्तिम स्पर्धक अनन्तगुणाहीन है। उससे उसोको मायाका अन्तिम स्पर्धक विशेषहीन है। उससे उसीके क्रोधका अन्तिम स्पर्धक विशेषहीन है। उससे उसोके मानका अन्तिम स्पर्धक विशेषहीन है। अप्रत्याख्यानावरण मानके अन्तिम स्पर्ध कसे नपुंसकवेदका अन्तिम अनुभागस्पर्धक अनन्तगुणा हीन है। उससे अरतिका अन्तिम अनुभागस्पर्धक अनन्तगुणा हीन है। उससे शोकका अन्तिम अनुभागस्पर्धक अनन्तगणा हीन है। उससे भयका अन्तिम अनुभाग स्पर्धक अनन्तगुणा हीन है। उससे जुगुण्साका अन्तिम अनुभागस्पधक अनन्तगुणा हीन है। उससे स्त्रीवेदका अन्तिम अनुभागस्पर्धक अनन्तगुणा हीन है। उससे पुरुषवेदका अन्तिम अनुभागस्पर्धक अनन्तगणा हीन है। उससे रतिका अन्तिम अनुभागस्पर्धक अनन्तगुणा हीन है। उससे हास्यका अन्तिम अनुभागस्पर्धक अनन्तगुणा हीन है। उससे सम्यग्मिथ्यात्वका अन्तिम अनुभागस्पर्धक अनन्तगुणा हीन है। उससे सम्यक्त्वका अन्तिम अनुभागस्पर्धक अनन्तगुणा हीन है। १. प्रा० प्रती माणचरिमफद्दयाए विसेसहीणं इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001411
Book TitleKasaypahudam Part 05
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages438
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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