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जयधवलासहिदे कसायपाहुरे [ अणुभागविहत्ती ४ ११८. वेउव्विय० जह. सोहम्मभंगो। अज. अणुक्कस्सभंगो० । वेउव्वियमिस्स०-आहार०--आहारमिस्स० जहण्णाजह० खेत्तभंगो । एवमवगद०--अकसा०मणपज्ज०-संजद०-सामाइय-छेदो०-परिहार०-सुहुमसांपराय०-जहाक्खाद०संजदे ति ।
११६. णाणाणु० विहंग० मोह० ज० लो० असंखे० भागो अहचोइसभागा वा देसूणा । अज० लोग० असंखे०भागो अहचोदस० सव्वलोगो वा । आभिणि०सुद०-अोहि० मोह० ज० लोग० असंखे०भागो। अज. लोग. असंखे० भागो अहचोदस० देसूणा । एवमोहिदंस०-सुकले० सम्मादि०-खइय०-वेदग०-उवसम०-सम्मामिच्छादिहि ति । णवरि सुक्कलेस्साए छचोदसभागा ।
६११८. वैक्रियिककाययोगियोंमे जघन्य अनुभागविभक्तिवालोंका स्पर्शन सौधर्मस्वर्गके समान है तथा अजघन्य अनुभागविभक्तिवालोंका स्पर्शन अनुत्कृष्टविभक्तिके समान है। वैक्रियिक मिश्रकाययोगी, आहारकाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगियों में जघन्य और अजघन्य अनुभागविभक्तिवालो का स्पर्शन क्षेत्रके समान है। इसी प्रकार अपगतवेदी, अकषायी, मन:पर्ययज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापनासंयत, परिहारविशुद्धिसंयत, सूक्ष्मसाम्परायसंयत और यथाख्यातसंयतों में जानना चाहिए।
विशेषार्थ-सौधर्मादिक कल्पो में जघन्य अनुभागका जो जीव स्वामी होता है वही वैक्रियिककाययोगमे भी उसका स्वामी होता है, अतः वैक्रियिककाययोगवालो में जघन्य अनुभागवालो का स्पशन सौधर्म कल्पके समान कहा है। वैक्रियिककाययोगियों मे अजघन्य अनभागवालों का स्पर्शन अनुत्कृष्टके समान है यह स्पष्ट ही है। वैक्रायकमिश्रकाययोगी आदि जीवो का क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण बतलाया है। इनका स्पर्शन भी इतना ही है. अतः इनमे दोनो अनुभागवालो का स्पर्शन क्षेत्रके समान कहा है। मूलमे कही गई अपगतवदी आदि अन्य मार्गणाओ में भी यही स्पर्शन घटित कर लेना चाहिए।
६ ११९. ज्ञानकी अपेक्षा विभंगज्ञानियों में मोहनीयकी जघन्य अनुभागविभक्तिवालो ने लोकके असंख्यातवें भागका और चौदह भागो मे से कुछ कम आठ भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अजघन्य अनुभागविभक्तिवालो ने लोकके असंख्यातवें भागा, चौदह भागो मेंसे कुछ कम आठ भागका और सर्व लोकका स्पर्शन किया है। श्राभिनिबोधिकज्ञानी, श्र तज्ञानी और अवधिज्ञानियो मे मोहनीयकर्मकी जघन्य अनुभागविभक्तिवालो ने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अजघ य अनुभागविभक्तिवालो ने लोक असंख्यातवें भाग
और चौदह भागोंमें से कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार अवधिदर्शनी, शुक्ललेश्यावाले, सम्यग्दृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि, उपशमसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्याष्टिया में जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि शुक्ललेश्यामें चौदह भागोंमे से कुछ कम छह भागप्रमाण स्पर्शन होता है।
विशेषार्य-जो विभङ्गज्ञानी एकेन्द्रियों में मारणान्तिक समुद्घात करते हैं उनके जघन्य अनुभाग सम्भव नहीं है, अत: इनमे जघन्य अनुभागवाले जीवों का स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और कुछ कम आठ बटे चौदह राजुप्रमाण कहा है। तथा अजघन्य अनुभागवालो का स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण, कुछ कम आठ बटे चौदह राजु और सब लोकप्रमाण कहा है । आभिनिबोधिकज्ञानी आदिमे क्षपक सूक्ष्मसाम्परायिक जीवके जघन्य अनुभाग होता
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