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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे. [पयडिषिहत्ती २ त्ति वत्तव्कंः। अवगदवेद० सिया सव्वे जीवा अविहत्तिया, सिया अविहतियाच विहत्तिओ च, सिया अविहतिया च विहत्तिया च एवं तिणि भंगा । एवमकसायि: जहाक्खाद० । सेससव्वमग्गणासु विहत्तिया णियमा अस्थि ।
णाणाजीवेहि भंगविचओ समत्तो। मार्गणाएँ गिना आये हैं वे बारहवें गुणस्थान तक होती हैं। तथा बारहवां गुणस्थान सान्तर है। कभी इस गुणस्थानमें एक भी जीव नहीं होता तथा कभी अनेक जीव होते हैं और कभी एक जीव होता है। जब इस गुणस्थानवाला एक भी जीव नहीं होता तब - उक्त मार्गमाओंमें कदाचित् सभी जीव मोहनीयविभक्तिवाले हैं यह पहला भंग बन जाता है। जब बारहवें गुणस्थानमें एक जीव होता है तब उक्त मार्गणाओंमें कदाचित् अनेक जीव मोहनीय विभक्तिवाले हैं और एक जीव मोहनीय अविभक्तिवाला है यह दूसरा भंग बन जाता है। तथा जब बारहवें गुणस्थानमें अनेक जीव होते हैं तब उक्त मार्गणाओंमें कदाचित् अनेक जीव मोहनीय विभक्तिवाले हैं और अनेक जीव मोहनीय अविभक्तिवाले है यह तीसरा भंग बन जाता है। पर औदारिकमिश्रकाययोग और काणकाययोगमें मोहनीय अविभक्तिका कथन करते समय सयोगिकेवली गुणस्थानकी अपेक्षा कथन करना • चाहिये । यद्यपि सयोगकेवली गुणस्थानमें सर्वदा बहुत जीव रहते है। पर औदारिकमिश्रकाययोग और कार्मणकाययोग सयोगिकेवलियोंके समुद्धात अवस्थामें ही होता है।
और सयोगिकेवली जीव सर्वदा समुद्धात नहीं करते । तथा सयोगकेवली जीव जब समुद्धात करते हैं तो कदाचित् एक जीव समुद्धात करता है और कदाचित् अनेक जीव समुद्धात करते हैं। अतः इस अपेक्षासे औदारिकमिश्रकाययोगी और कर्मणकाययोगी जीवोंके भी उक्त प्रकारसे तीन भंग हो जाते हैं।
अपगतवेदी जीवों में कदाचित् सभी जीव मोहनीय अविभक्तिवाले हैं। कदाचित् अनेक जीव मोहनीय अविभक्तिवाले हैं और एक जीव मोहनीय विभक्तिवाला है। कदाचित् अनेक जीव मोहनीय अविभक्तिवाले और अनेक जीव मोहनीय विभक्तिवाले हैं, इस प्रकार तीन भंग होते हैं। इसी प्रकार कषायरहित जीवोंके और यथाख्यातसंयतोंके भी कथन करना चाहिये। शेष सभी मार्गणाओंमें मोहनीय विभक्तिवाले जीव नियमसे होते हैं।
विशेषार्थ-अपगतवेदी जीव नौवें गुणस्थानके सवेद भागसे आगे होते हैं। उनमें क्षपकश्रेणीके दसवें गुणस्थान तकके जीव और उपशमश्रेणीके जीव मोहनीय विमक्तिवाले हैं। अतः जब मोहनीय कर्मसे युक्त अवेदी जीव नहीं पाया जाता है तब मुख्यतः सयोग केवलियोंकी अपेक्षा सभी अवगतवेदी जीव मोहनीय कर्मसे रहित होते हैं, यह पहला भंग बन जाता है। जब नौवेंके अवेद भागसे लेकर दसवें गुणस्थान तक कोई एक ही जीव मोहनीय कर्मसे युक्त पाया जाता है तब 'कदाचित् अनेक अपगतगतवेदी जीव
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