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________________ गा० २२ वड्ढिविहत्तीए कालाणुगमो ४७३ वेउब्वियमिस्स० । सबढे संखे०भागहाणी के० १ जह० एगसमओ, उक० संखेजा समया । अवहि० ओघं । एवं परिहार० वत्तव्यं । आहार० अवष्ठि० जह० एगसमओ, उक० अंतोमु०। एवमकसाय०-सुहुम०-जहाक्खाद० वत्तव्यं । अवगद० संखेज भागहाणी-संखे गुणहाणी के० १ जह• एगसमओ, उक्क० संखजा समया। अवधि जह० एयसमओ, उक्क० अंतोमु० । आहारमिस्स. अवहि० जहण्णुक० अंतोमुहुत्तं । प्रमाण बन जाता है। किन्तु संख्यात भागहानि निरन्तर आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण काल तक ही होती है, अतः इनमें भी संख्यात भागहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है । इन मार्गणाओंमें शेष हानि और वृद्धि नहीं होती। __ सर्वार्थसिद्धिमें संख्यातभागहानिका काल कितना है ? जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। तथा अवस्थितका काल ओघके समान है। इसीप्रकार परिहारविशुद्धि संयत जीवोंके उक्त दोनों पदोंका काल कहना चाहिये । तात्पर्य यह है कि इन मार्गणाओंका प्रमाण संख्यात है अतः इनमें संख्यातभाग हानिका उक्त प्रमाण काल ही घटित होता है। तथा अवस्थितका काल ओघके समान बननेमें कोई आपत्ति नहीं, क्योंकि इन मार्गणाओंमें जीव निरन्तर पाये जाते हैं। आहारक काययोगी जीवोंके अवस्थित पदका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। इसीप्रकार अकषायी, सूक्ष्मसापरायिकसंयत और यथाख्यातसंयत जीवोंके अवस्थित पदका काल कहना चाहिये। सारांश यह है कि इन मार्गणाओंका नाना जीवोंकी अपेक्षा उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त ही होता है और इनमें एक अवस्थित पद ही पाया जाता है अतः इनमें मरणकी अपेक्षा अवस्थितका जघन्य काल एक समय और अपने अपने कालकी अपेक्षा उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त कहा है। ___ अपगतवेदी जीवोंमें संख्यातभागहानि और संख्यातगुणहानिका काल कितना है ? जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। तथा अवस्थित पदका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। आहारकमिश्रकाययोगी जीवोंके अवस्थित पदका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। विशेषार्थ-यदि अपगतवेदी जीव निरन्तर संख्यातभागहानि और संख्यात गुणहानि करें तो संख्यात समय तक ही करते हैं, अतः इनमें संख्यातभागहानि और संख्यातगुणहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल संख्यात समय कहा है। तथा मोहनीय कर्मके साथ अपगतवेदका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त पाया जाता है, अतः अपगतवेदमें अवस्थितका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त कहा है। आहारकमिश्रकाययोगका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है और इसमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001408
Book TitleKasaypahudam Part 02
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages520
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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