SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 383
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३५८ __ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ पयडिविहत्ती २ ६३८६. देवेसु सव्वत्थोवो वावीसविह० कालो। सत्तावीसविह० असंखेजगुणो। छब्बीसविह० असंखेजगुणो। एकवीस-चवीस-अहावीसवि० कालो विसेसाहिओ । सोहम्मादि जाव उवरिमगेवज ति ताव सव्वत्थोवो वावीसवि० कालो, सत्तावीसवि० कालो असंखेजगुणो, एकवीस-चउवीस-छब्बीस-अहावीसवि० काला चत्तारि वि सरिसा असंखेजगुणा । अणुद्दिसादि-अणुत्तरविमाणवासियदेवेसु सव्वत्थोवो वावीसवि० कालो । एकवीस-चउवीस अहावीविह० काला तिण्णि वि सरिसा असंखेजगुणा। ___३६०. इंदियाणुवादेण एइंदिएसु सव्वत्थोवो सत्तावीसवि० कालो, अठ्ठावीसविह० कालो असंखेजगुणो, छव्वीसविह० कालो अणंतगुणो। एवं जाणिदण णेदव्वं जाव अणाहारए त्ति । एवं काल-अप्पाबहुअं समत्तं । ६३६१.संपहि कालमस्सिदण जीव-अप्पाबहुअं परूवणहं जइवसहाइरियो उत्तरसुत्तं ३८६.देवोंमें बाईस विभक्तिस्थानका काल सबसे थोड़ा है। इससे सत्ताईस विभक्तिस्थानका काल असंख्यातगुणा है । इससे छब्बीस विभक्तिस्थानका काल असंख्यातगुणा है। इससे इक्कीस, चौबीस और अट्ठाईस विभक्तिस्थानका काल विशेष अधिक है। सौधर्म कल्पसे लेकर उपरिम प्रैवेयक तक बाईस विभक्तिस्थानका काल सबसे थोड़ा है। इससे सत्ताईस विभक्तिस्थानका काल असंख्यातगुणा है। इक्कीस, चौबीस, छब्बीस और अट्ठाईस विभक्तिस्थानोंके चारों काल परस्परमें समान होते हुए भी सत्ताईस विभक्तिस्थानके कालसे असंख्यातगुणे हैं। अनुदिशसे लेकर अनुत्तर विमान तक रहनेवाले देवोंमें बाईस विभक्तिस्थानका काल सबसे थोड़ा है। इक्कीस, चौबीस और अट्ठाईस विभक्तिस्थानोंके काल परस्परमें समान होते हुए भी बाईस विभक्तिस्थानके कालसे असंख्यातगुणे हैं। ६३९०.इन्द्रियमार्गणाके अनुवादसे एकेन्द्रियोंमें सत्ताईस विभक्तिस्थानका काल सबसे थोड़ा है। इससे अट्ठाईस विभक्तिस्थानका काल असंख्यातगुणा है। इससे छब्बीस विभक्तिस्थानका काल अनन्तगुणा है । इसीप्रकार जानकर अनाहारक मार्गणा तक कथन करना चाहिये। विशेषार्थ-यहां शेषमार्गणाओंमें विभक्तिस्थानोंके काल विषयक अल्पबहुत्वका कथन नहीं किया है किन्तु जानकर कथन कर लेनेकी सूचना की है। सो पहले सब मार्गणाओं में एक जीवकी अपेक्षा कालका कथन कर आये हैं । अतः उसके अनुसार यहां अल्पबहुत्वका विचार करलेना चाहिये। इस प्रकार कालविषयक अल्पबहुत्व समाप्त हुआ। ६३९१.अब कालका आश्रय लेकर जीवविषयक अल्पबहुत्वके कथन करनेके लिये पतिवृषभ भाचार्य आगेका सूत्र कहते हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001408
Book TitleKasaypahudam Part 02
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages520
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy