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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ पयडिविहत्ती २ ६३५८. ओगलियमिस्स० अहावीस-सत्तावीसविह० केत्ति० १ असंखेज्जा। छव्वीसविह० के० १ अणंता । वावीस-एक्कवीस-चउवीसविह० के० ? संखेज्जा । एवं कम्मइय० । णवरि चउवीस० असंखेज्जा । एवमणाहार० । एवं वेउब्वियमिस्स । णवरि छब्बीस० असंखेज्जा । उब्धिय० सव्वपदा० असंखेज्जा । इत्थि० पंचिंदियभंगो। णवरि एकवीस० केत्तिया ? संखेज्जा । आभिणि-सुद-ओहि० अठ्ठावीसचउवीस-एकवीसविह० के० । असंखेज्जा। सेसप० संखेज्जा। एवं ओहिदंस-सम्माइटि०-वेदयसम्माइहि त्ति वत्तव्वं । णवरि वेदयसम्माइट्ठीसु इगिवीसादिपदं णत्थि ।
$३५८. औदारिकमिश्रकाययोगी जीवोंमें अट्ठाईस और सत्ताईस विभक्तिस्थानवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। छब्बीस विभक्तिस्थानवाले जीव कितने हैं ? अनन्त हैं। बाईस, इक्कीस और चौबीस विभक्तिस्थानवाले जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। इसीप्रकार कार्मणकाययोगी जीवोंकी संख्या जानना चाहिये। इतनी विशेषता है कि कार्मणकाययोगी चौबीस विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यात हैं। इसीप्रकार अनाहारकोंमें जानना चाहिये। तथा इसीप्रकार वैक्रियिकमिश्रकाययोगियोंमें जानना चाहिये । पर यहां इतनी विशेषता है कि छब्बीस विभक्तिस्थानवाले वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जीव असंख्यात होते हैं।
विशेषार्थ-जो कृतकृत्यवेदक सम्यग्दृष्टि या क्षायिक सम्यग्दृष्टि मनुष्य भोगभूमिके तिथंच और मनुष्योंमें उत्पन्न होते हैं उन्हींके बाईस और इक्कीस विभक्तिस्थानके होते हुए
औदारिक मिश्रकाययोग होता है। जो क्षायिक सम्यग्दृष्टि देव या नारकी मरकर मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं उन्हींके इक्कीस विभक्तिस्थानके होते हुए औदारिक मिश्रकाययोग होता है । तथा जो वेदक सम्यग्दृष्टि देव और नारकी मरकर मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं उन्हींके चौबीस विभक्तिस्थानके रहते हुए औदारिक मिश्रकाययोग होता है। अतः औदारिकमिश्रकाययोगमें इन तीन विभक्तिस्थानवाले जीवोंका प्रमाण संख्यात कहा है। शेष कथन सुगम है।। ___ वैक्रियिककाययोगियोंमें सभी सम्भव विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यात हैं। खीवेदियोंमें संभव अट्ठाईस आदि विभक्तिस्थानवाले जीवोंकी संख्या पंचेन्द्रियोंके समान जानना चाहिये । इतनी विशेषता है कि स्त्रीवेदी इक्कीस विभक्तिस्थानवाले जीव कितने है ? संख्यात हैं।
विशेषार्थ-स्त्रीवेदके रहते हुए मनुष्य ही इक्कीस विभक्तिस्थानवाले होते हैं अतः इनका प्रमाण संख्यात कहा है। शेष कथन सुगम है।
मतिज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंमें अट्ठाईस, चौबीस और इक्कीस विभतिस्थानवाले जीव कितने है ? असंख्यात हैं। तथा शेष विभक्तिस्थानवाले जीव संख्यात हैं । इसीप्रकार अवधिदर्शनी, सम्यग्दृष्टि और वेदकसम्यग्दृष्टि जीवोंमें संख्या कहना चाहिये । इतनी विशेषता है कि वेदकसम्यग्दृष्टि जीवोंके इक्कीस आदि विभक्तिस्थान नहीं हैं।
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