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________________ जयपवलासहिंद कसायपाहुडे पिडिबिहत्ती ३ ६३३५. संपहि एदेसिं चेव भंगाणमण्णेण पयारेण आणयणं वुश्चदे । तं जहा... एकोत्तरपदवृद्धो रूपाभाजितश्च पदवृद्वैः । .. गच्छस्संपातफलं समाहतस्सन्निपातफलम् ॥ ४ ॥ १०,६,८,७,६,५,४, ३,२,१ ३३३६. एदीए अजाए एसा संदिही वेयठेवा। सास १,२,३,४,५,६,७,८,६,१०, एवं ठविय तदो एग-दु-तिसंजोगादिपत्थारसलागाओ आणिजंति । तत्थ तेवीसविहत्तियस्स एगसंजोगपत्थारो एसो : : । एत्थ उवरिमसुण्णाओ धुवं ति ठविदाओ। ६३३५. अब अन्य प्रकारसे इन भंगोंके लानेकी विधि कहते हैं। वह इसप्रकार है "आदिमें स्थापित एकसे लेकर बढ़ी हुई संख्यासे, अन्तमें स्थापित एकसे लेकर बढ़ी हुई संख्यामें भाग देना चाहिये । इस क्रियाके करनेसे संपात फल अर्थात एकसंयोगी (प्रत्येक) भंग गच्छ प्रमाण होते हैं और सम्पात फलको नौ वटे दो आदिसे गुणित कर देनेपर सन्निपातफल प्राप्त होता है ॥ ४ ॥" $ ३३६. इस आर्याकी यह संदृष्टि लिखना चाहिये १ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ १० उदाहरण संपातफलका १० १ = १० सम्पातफल या प्रत्येक भंग। उदाहरण सन्निपातफलका-१०४३= ४५ द्विसंयोगी १०x२x६=१२० त्रिसंयोगी १०x२x६xx=२१० चतुःसंयोगी पांच संयोगी आदि भंगोंको इसी क्रमसे ले आना चाहिये। . इसप्रकार संदृष्टिको स्थापित करके इससे एकसंयोगी, द्विसंयोगी और त्रिसंयोगी आदि प्रस्तार संबन्धी शलाकाएं ले आना चाहिये। उनमें से तेईस विभक्तिस्थानका एकसंयोगी प्रस्तार : यह है। इस प्रस्तारमें ध्रुव विभक्तिस्थानोंके द्योतन करनेके लिये अड्डोंके ऊपर शून्य रखे हैं। उन शून्योंके नीचे जो १ और २ के अङ्क रखे हैं उनसे क्रमसे (१) 'एकाधकात्तरा अंका यस्ता भाज्याः क्रमस्थितः। परः पूर्वेण संगुण्यस्तत्परस्तेन तेन च ।' -लीला •पृ० १०७ । (२) सम्माहतं-स० । समाहृतं आ० । समाहितः-अ०। (३) एवं द्वविय अंतिमघउसठ्ठीए एगरूवेण भाजिदाए च उसट्ठी सपातफलं लब्भदि ६४ । कि संपादफलं णाम ? संपादो एगसंजोगो तस्स फलं सपादफलं णाम । पुणो तिसट्ठिदुब्भागेण संपादफले गुणिदे चउदिअक्ख राणं दुसंजोगभंगा एतिया हॉति २०१६ । xx संपहि चउसटुिअक्खराणं तिसंजोगभंगे भण्णमाणे दुसंजोगभंगे उप्पणसोलसुत्तरवेसहस्सेसु तिसंजोगभंगा एत्तिया होंति ४१६६४ ।'-० मा० ८७३ । - - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001408
Book TitleKasaypahudam Part 02
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages520
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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